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________________ ७० : धर्मवीर महावीर और कर्मवीर कृष्ण ] पद्मचरित दिगम्बर-सम्प्रदाय का ग्रन्थ है, इसमें जरा भी विवाद नहीं है । पउमचरिय के विषय में अभी मतभेद है । पउमचरिय चाहे दिगम्बरीय हो चाहे श्वेताम्बरीय हो, अथवा इन दोनों रूढ़ सम्प्रदायों से भिन्न तीसरे किसी गच्छ के आचार्य की कृति हो, कुछ भी हो यहाँ तो सिर्फ यही विचारणीय है कि पउमचरिय में निर्दिष्ट मेरुकम्पन की घटना का मूल क्या है ? । आगम ग्रन्थों एवं निर्युक्ति में इस घटना का कुछ भी उल्लेख नहीं है, अतएव यह तो कहा ही नहीं जा सकता कि पउमचरिय के कर्त्ता ने वहाँ से इसे लिया है तब यह घटना आई कहाँ से ? यद्यपि पउमचरिय का रचना - समय पहली शताब्दी निर्देश किया गया है, फिर भी कुछ कारणों से इस समय में भ्रम जान पड़ता है । ऐसा मालूम होता है कि पउमचरिय ब्राह्मण पद्मपुराण के बाद की कृति है । पाँचवीं शताब्दी से पूर्व के होने की बहुत ही कम संभावना है। चाहे जो हो, परन्तु अंग और नियुक्ति आदि में सूचित न की हुई मेरु- कम्पन की घटना पउमचरिय में कहाँ से आई? यह प्रश्न तो कायम ही रहता है । यदि पउमचरिय के कर्त्ता के पास इस घटना का उल्लेख करने वाला अधिक प्राचीन कोई ग्रंथ होता और उसी के आधार पर उसने इसका उल्लेख किया होता तो शायद ही नियुक्ति और भाष्य में इसका उल्लेख होने से रह सकता था । अतएव कहना चाहिये कि यह घटना कहीं बाहर से पउमचरिय में आ घुसी है । दूसरी ओर हरिवंश आदि ब्राह्मणपुराणों में फलद्रूप पौराणिक कल्पना में से जन्मी हुई गोवर्धन के उत्तोलन की घटना का उल्लेख प्राचीन कल से मिलता है । पौराणिक अवतार कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत का उत्तोलन और जैन तीर्थंकर महावीर द्वारा सुमेरुपर्वत का कम्पन, इन दोनों में इतनी अधिक समानता है कि कोई भी एक कल्पना, दूसरी पर अवलम्बित है | हम देख चुके हैं कि आगम निर्युक्ति-ग्रंथों में, जिनमें कि गर्भ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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