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६८ : धर्मवीर महावीर और कर्मवीर कृष्ण] इसी आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में अत्यन्त संक्षेप में भगवान की सारी जीवनकथा आती है। इसमें गर्भ के संहरण की घटना का निर्देश आता है और किसी प्रकार का ब्यौरा दिये बिनाकिसी विशेष घटना का निरूपण न करते हुए-सिर्फ भयंकर उपसर्गों को सहन करने की बात कही गई है। भगवती नामक पाँचवें अंग में गर्भ-संहरण का वर्णन विशेष पल्लवित रूप में मिलता है। फिर इसी अंग में दूसरी जगह महावीर अपने को देवानन्दा का पुत्र बताते हुए गौतम को कहते हैं कि (भगवती श० ६ उद्देश ३३, पृ० ४५६) यह देवानन्दा मेरी माता है। (इनका जन्म त्रिशला की कोख से होने के कारण सब लोग इन्हें त्रिशलापुत्र के रूप में तबतक जानते होंगे, ऐसी कल्पना दिखाई देती है)।
यद्यपि अंग विक्रम की पाँचवीं शताब्दी के आसपास संकलित हुए हैं तथापि इस रूप में या कहीं-कहीं कुछ भिन्न रूप में इन अंगों का अस्तित्व पाँचवीं शताब्दी से प्राचीन है। इसमे भी आचारांग के प्रथम श्रुतस्कंध का रूप और भी प्राचीन है। यह बात हमें ध्यान में रखनी चाहिये । अंग के बाद के साहित्य में आवश्यक नियुक्ति और उसका भाष्य गिना जाता है, जिनमें महावीर के जीवन से सम्बन्ध रखने वाली उपर्युक्त घटनाओं का वर्णन है। यहाँ यह स्मरण रखना चाहिये कि यद्यपि नियुक्ति एवं भाष्य में इन घटनाओं का वर्णन है तथापि वह बहुत संक्षिप्त है और प्रमाण में कम है। इसके बाद इस नियुक्ति और भाष्य की चूणि का समय आता है । चूणि में इन घटनाओं का वर्णन विस्तार से और प्रमाण में अधिक पाया जाता है ।
चूणि का रचनाकाल सातवीं या आठवीं सदी माना जाता है। मूल नियुक्ति ई० सन् से पूर्व की होने पर भी इसका अन्तिम समय ईसा की पाँचवीं शताब्दी से और भाष्य का समय सातवीं शताब्दी से अर्वाचीन नहीं है। चूर्णिकार के पश्चात् महावीर के जीवन की अधिक से अधिक और परिपूर्ण वृत्तांत की पूर्ति करने वाले आचार्य हेमचन्द्र हैं। हेमचन्द्र ने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र के दशम पर्व में तमाम पूर्ववर्ती महावीर-जीवन-संबंधी ग्रन्थों का दोहन करके अपनी
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