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________________ ६० : चार तीर्थकर] आया। तपस्वी को उसने अनेक यापीड हाथी द्वारा कृष्ण को परिषह दिये। उसने एक बार कुचलवाने की योजना की, परंतु उन्मत्त हाथी और हथिनी का चतुर कृष्ण ने कंस द्वारा नियुक्त रूप धरकर तपस्वी को दन्तशुल कुवलयापीड को मर्दन करके से ऊपर उछाल कर नीचे पटक मार डाला। दिया। इसमें असफल होने पर -भागवत दशमस्कन्ध,अ० ४३, उसने भयंकर बवण्डर रचकर इन श्लोक १-२५, पृ० ६४७-४८ । तपस्वी को उड़ाया। इन प्रति जब कोई अवसर आता है कूल परिषहों से तपस्वी जब तो आसपास बसनेवाली गोपियाँ ध्यानचलित न हुये तब संगम ने इकट्ठी हो जाती हैं, रास खेलती अनेक सुन्दर स्त्रियाँ रची । हैं और रसिक कृष्ण के साथ उन्होंने अपने हाव-भाव, गीतनृत्य, वादन द्वारा तपस्वी को क्रीड़ा करती हैं । यह रसिया भी तन्मय होकर पूरा भाग लेता है चलित करने का प्रयत्न किया, और भक्त गोपीजनों की रसपरन्तु जब इसमें भी उसे सफलता न मिली तो अन्त में उसने तपस्वी वृत्ति को विशेष उद्दीप्त करता को नमन किया और भक्त होकर उनका पूजन करके चलता बना। -भागवत दशमस्कन्ध, अ० -त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, ३०, श्लोक १-४०, पृष्ठ पर्व १०, सर्ग ४, पृ० ६७-७२। ६०४-७ । दृष्टिविन्दु (१) संस्कृतिभेद___ ऊपर उदाहरण के तौर पर जो थोड़ी सी घटनाएँ दी गई हैं, वे आर्यावर्त की संस्कृति के दो प्रसिद्ध अवतारी पुरुषों के जीवन की हैं। उनमें से एक तो जैन-सम्प्रदाय के प्राण-स्वरूप दीर्घ तपस्वी महावीर के हैं और दूसरे वैदिक-सम्प्रदाय के तेजोरूप योगीश्वर कृष्ण के हैं। ये घटनाएँ सचमुच घटित हुई हैं, अर्धकल्पित हैं या एकदम कल्पित हैं, इस विचार को थोड़ी देर के लिए एक ओर रख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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