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________________ [ धर्मवीर महावीर और कर्मवीर कृष्ण : ४५ दोनों के समय में इस विकास को असाधारण विशेषता प्राप्त हुई, जिसके कारण क्रियाकाण्ड और वहमों के किलों के साथ साथ उसके अधिष्ठायक अदृश्य देवों की पूजा को भी तीव्र आघात पहुँचा । भगवान् महावीर और बुद्ध का युग सचमुच मनुष्य पूजा का युग था । इस युग में सैकड़ों-हजारों स्त्री-पुरुष क्षमा, सन्तोष, तप, ध्यान आदि सद्गुणों के संस्कार प्राप्त करने के लिये अपने जीवन को अर्पण करते हैं और इन गुणों की पराकाष्ठा को पहुँचे हुए अपने श्रद्धास्पद महावीर और बुद्ध जैसे मनुष्य-व् - व्यक्तियों की, ध्यान या मूर्ति द्वारा पूजा करते हैं । इस प्रकार मानवपूजा के भाव की बढ़ती के साथ ही देवमूत्ति का स्थान विशेषतः मनुष्यमूर्ति को प्राप्त होता है । महावीर और बुद्ध जैसे तपस्वी, त्यागी और ज्ञानी पुरुषों द्वारा सद्गुणों की उपासना को वेग मिला और उसका स्पष्ट प्रभाव क्रियाकाण्ड-प्रधान ब्राह्मण-संस्कृति पर पड़ा। वह यह कि जो ब्राह्मण-संस्कृति एक बार देव, दानव और दैत्यों की भावना एवं उपासना में मुख्य रूप से मशगूल थी, उसने भी मनुष्यपूजा को स्थान दिया । अब जनता अदृश्य देव के बदले किसी महान विभूतिरूप मनुष्य को पूजने, मानने और उसका आदर्श अपने जीवन में उतारने के लिये तत्पर हुई । इस तत्परता का उपशमन करने के लिये ब्राह्मण-संस्कृति ने राम और कृष्ण के मानवीय आदर्श की कल्पना की और एक मनुष्य के रूप में उनकी पूजा प्रचलित हो गई । महावीर बुद्ध युग से पहले राम और कृष्ण की, आदर्श मनुष्य के रूप में पूजा होने का कोई भी चिह्न शास्त्रों में नहीं दिखाई देता । इसके विपरीत महावीर - बुद्ध युग के पश्चात् या उस युग के साथ ही साथ राम और कृष्ण की मनुष्य के रूप में पूजा होने के हमें स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं । इससे तथा अन्य साधनों से यह मानने के लिये पर्याप्त कारण हैं कि मानवीय पूजा की मजबूत नींव महावीर - बुद्ध युग में डाली गई और देवपूजकवर्ग में भी मनुष्यपूजा के विविध प्रकार और सम्प्रदाय इसी युग में प्रारम्भ हुए । मनुष्यपूजा में देवीभाव का मिश्रण लाखों-करोड़ों मनुष्यों के मन में सैकड़ों और हजारों वर्षो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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