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________________ ३० : चार तीर्थकर] आता है। ब्राह्मण परम्परा में कृष्ण का वर्णन तो बहुत मिलता है किन्तु उसमें नेमिनाथ का उल्लेख तक नहीं। यह एक आश्चर्य की बात है। __ मथुरा में जब कृष्ण को आफत में फँसना पड़ा तब उन्होंने अपनी राजधानी द्वारका में बनाई। नेमिनाथ का बचपन और यौवन द्वारका में व्यतीत हआ था ऐसा प्रतीत होता है। नेमिनाथ और राजीमती का जीवन जैन-परंपरा की त्यागवृत्ति का नना है । नेमिनाथ लग्न करने की इच्छा नहीं रखते थे किन्तु दूसरों के आग्रह के कारण लग्न करने को तैयार हुए थे। लग्न के समय कत्ल के लिये इकट्ठे किये गये पशुओं को देखकर नेमिनाथ में करुणा उमड़ पड़ती है और मानसिक कम्प का अनुभव उन्हें होता है और पशुवध के ख्याल से लग्न को तिलाञ्जलि देकर वे गिरनार पर तपश्चर्या करने चले जाते हैं। राजीमती कंस की बहन और राजा उग्रसेन की पुत्री थी। राजीमती ने जब नेमिनाथ का विषय में त्यागभाव जाना तो वह भी संसा कर तपस्या करने के लिए चल देती है। तपस्या के समय नेमिनाथ का भाई रथनेमि जो साधु हो गया था, राजीमती के रूप पर मुग्ध होता है किन्तु राजीमती ने उन्हें उपदेश देकर -साधु-धर्म में स्थिर किया। इसके बाद राजीमती और नेमिनाथ उपदेश करते हुए विचरण करते हैं। जैन-परंपरा के अनुसार साधु और साध्वी का जैसा आचार होता है तदनुसार उन दोनों का ‘जीवन व्यतीत हुआ। ये दोनों ऐतिहासिक पात्र हों या न हों, किन्तु जैन लोगों के मन में उन्होंने ऐसा अचल स्थान पाया है जैसा कि हिन्दूमात्र के मन में राम-सीता ने । अतएव उनके अस्तित्व के विषय में किसी को सन्देह नहीं होगा। कृष्ण विषयक साहित्य इतना विशाल है, तत्सम्बंधी गीत संस्कृत और प्राकृत में इतने अधिक हैं कि केवल उन्हीं का संग्रह एक महाभारत हो जाये । जैन भी कृष्ण को नेमिनाथ के समान मानक र "भावी तीर्थंकर के रूप में जानते हैं। किन्तु हम यदि दोनों के चरित्र को अधिक समझने का प्रयत्न करें तो हमें सच्चा रहस्य प्रतीत हो जायगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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