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________________ [भगवान् ऋषभदेव और उनका परिवार : २७. भी ऐसी नारी-रत्न नहीं कि जो धर्म के नाम पर लड़ते हुए अभिमानी पुरुषों की भूल के मर्मस्थान को समझे और वह उनके सामने निर्भयता के साथ प्रकट करे ? इसी तरह क्या एक भी ऐसा पुरुष-- केसरी साधुराज नहीं कि जो बाहुबली की तरह सरल हृदय वाला हो और भूल बताने वाला कौन है, इसका विचार किये बिना ही, भूल तो भूल ही है, यह समझ कर अपनी भूल को मंजूर कर ले और उसका संशोधन करके आध्यात्मिक और सामाजिक कल्याण को निरापद बनावे ? हमारी कामना है कि समाज में ब्राह्मी-सुन्दरी जैसी बहिनें हों और बाहुबली के समान पुरुष ! उपसंहार लेख में दिये हुए मुद्दे संक्षेप में नीचे अनुसार हैं (१) भगवान् ऋषभ सिर्फ जैन-समाज के ही नहीं वरन् सारी आर्य-जाति के उपास्य देव हैं । (२) भगवान् ऋषभ द्वारा प्रतिपादित और आचरित प्रबृत्तिधर्म ही वैयक्तिक और सामाजिक जीवन के साथ सुमेल रखने वाला होने के कारण जैनधर्म का असली स्वरूप है। (३) वर्तमान जनसमाज की ऐकान्तिक निवृत्ति की समझ समग्र जीवन की दृष्टि से अधूरी है, इसलिए ऋषभ का आदर्श सामने रखकर उसमें संशोधन करने की जरूरत है। (४) आचार्य हेमचन्द्र जैसों ने इस तरह के संशोधन की दिशा भी सूचित कर दी है और आज के कर्मयुग में तो वह सहज ही मिल सकती है। (५) भरत के जीवन में भी प्रवृत्ति-धर्म का स्वाभाविक स्थान है। प्रसंग-प्रसंग पर जो निवृत्ति-धर्म के चित्र नजर आते हैं वे पीछे की जैन-धर्म विषयक अधूरी समझ के परिणाममात्र हैं। (६) बाहुबली भरत से भी अधिक उन्नत पात्र हैं। उन्होंने निश्चित विजय के पास पहुंच कर भी त्याग दिखाकर बड़ा भारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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