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________________ १२६ : भगवान् पाजनाथ की गिरासत सारथी को धर्म प्राप्त कराया था । जैन आगमगत सेयविया ही बौद्ध पिटकों की सेतव्या जान पड़ती है, जो श्रावस्ती से दूर नहीं। वैशाली, जो मुजफ्फरपुर जिले का आजकल का बसाढ' है और क्षत्रियकुण्ड जो वासुकुण्ड कहलाता है तथा वाणिज्यग्राम जो बनिया कहलाता है, उसमें भी पाश्र्वापत्यिक मौजद थे, जबकि महावीर का जीवनकाल आता है। महावीर के माता-पिता भी पार्वापत्यिक कहे गये हैं। उनके नाना चेटक तथा बड़े भाई नदिवर्धन आदि पाश्र्वापत्यिक रहे हों तो आश्चर्य नहीं । गंगा के दक्षिण राजगृही था, जो आजकल का राजगिर है । उसमें जब महावीर धर्मोपदेश करते हुए आते हैं तब तू गियानिवासी पार्वा. पत्यिक थेरों के बीच हुई धर्म चर्चा की बात गौतम द्वारा सुनते हैं । तुगिया राजगृह के नजदीक में ही कोई नगर होना चाहिये, जिसकी पहचान आचार्य विजयकल्याणसूरि आधुनिक तुगी ग्राम से कराते हैं। बचे-खुचे ऊपर के अति अल्प वर्णनों से भी इतना तो निष्कर्ष हम निर्विवाद् रूप से निकाल सकते हैं कि महावीर के भ्रमण और धर्मोपदेश के वर्णन में पाये जाने वाले गंगा के उत्तर दक्षिण के कई गाँव-नगर पार्श्वनाथ की परम्परा के निग्रंथों के भी विहारक्षेत्र एवं प्रचार-क्षेत्र रहे। इसी से हम जैन आगमों में यत्र-तत्र यह भी पाते हैं कि, राजगृही आदि में महावीरकी पाश्र्वापत्यिकोंसे भेंट हुई। १. रायपसेणइय (पं० श्री बेचरदासजी संपादित), पृ० ३३० आदि। २. देखो उपर्युक्त ग्रन्थ, पृ० २७५ । ३४, ५. द्रष्टव्य-वैशाली अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ०६२; आ. विजयकल्याणसूरि कृत श्रमण भगवान महावीर में विहारस्थलनाम-कोष; The Geographical Dictionary of Ancient and Mediae val India. ६. समणस्स णं महावीरस्स अम्मापियरो पासावच्चिज्ज समणोवासगा यावि होत्था ।-आचारांग, २, भावचूलिका ३, सूत्र ४०१। ७. भगवती, २, ५। ८. श्रमण भगवान महावीर, पृ० ३७१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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