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________________ १२४ : भगवान् पार्श्वनाथ की गिरासत बतलाये उनमें जैन आगमों के अतिरिक्त बौद्ध पिटक का भी समावेश होता है। बौद्ध पिटकगत उल्लेखों से जैन आगमगत वर्णनों का मेल बिठाया गया तब ऐतिहासिकों को प्रतीति दृढ़तर हुई कि, महावीर के पूर्व पार्श्वनाथ हए हैं। जैन आगमों में पार्श्वनाथ के पूर्ववर्ती बाईस तीर्थंकरों का वर्णन आता है। पर उसका बहुत बड़ा हिस्सा मात्र पौराणिक है। उसमें ऐतिहासिक प्रमाणों की कोई गति अभी तो नहीं दिखती। ___ याकोबी द्वारा पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता स्थापित होते ही विचारक और गवेषक को उपलब्ध जैन आगम अनेक बातों के लिए ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्व के जान पड़े और वैसे लोग इस दृष्टि से भी आगमों का अध्ययन-विवेचन करने लगे । फलतः भारतीय कतिपय विचारकों ने और विशेषतः पाश्चात्य विद्वानों ने उपलब्ध जैन आगम के आधार पर अनेक विध ऐतिहासिक सामग्री इकट्ठी को और उसका यत्र-तत्र प्रकाशन भी होने लगा । अब तो धीरे-धीरे रूढ़ और श्रद्धालु जैन वर्ग का भी ध्यान ऐतिहासिक दृष्टि से श्रत का अध्ययन करने को और जाने लगा है। यह एक सन्तोष की बात है। प्रस्तुत लेख में उसी ऐतिहासिक दृष्टि का आश्रय लेकर विचार करना है कि, भगवान महावीर को जो आचार-विचार की आध्यात्मिक विरासत मिली वह किस-किस रूप में मिली और किस परपरा से मिली? इस प्रश्न का संक्षेप में निश्चित उत्तर देने के बाद उसका क्रमशः स्पष्टीकरण किया जायगा। उत्तर यह है कि, महावीर को जो अध्यात्मिक विरासत मिली है वह पार्श्वनाथ की परंपरागत देन है । वह विरासत मुख्यतया तीन प्रकार की है-(१) संघ, (२) आचार और (३) श्रु त । यद्यपि उपलब्ध आगमों में कई आगम ऐसे हैं कि जिनमें किसी न किसी रूप में पार्श्वनाथ या उनकी परंपरा का सूचन हुआ है परन्तु इस लेख में मुख्यतया पाँचः आगम जो कि इस विषय में १. आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, भगवती और उत्तराध्ययन। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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