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________________ [ चार तीर्थंकर : ४ ऋषभदेव के सम्बन्ध में भी कुछ न कुछ अवश्य लिखा होगा, जो वर्तमान भागवत में भी लिखा गया है । सारी आर्यजाति में समान रीति से ऋषभदेव की न्यूनाधिक मान्यता बहुत प्राचीन काल से चली आती हुई लगती है । बौद्ध परंपरा में बुद्ध को और ब्राह्मणपरंपरा में राम, वासुदेव, कृष्ण और महादेव को आज तक इतनी प्रतिष्ठा मिलती गई जिसके कारण बौद्ध परंपरा के साहित्य में तो ऋषभ का नाम आने ही नहीं पाया और ब्राह्मण-परंपरा के भागवत जैसे ग्रंथ में ऋषभ का चरित्र पुराने रूप में आया तो सही परन्तु वह भागवत के अवतार वासुदेव में गौण होकर उसके नीचे दब गया । मगर जैन साहित्य में और जैन परंपरा में ऐसा नहीं हुआ । पार्श्वनाथ और महावीर की जाहोजलाली वाले प्राचीन, मध्य और वर्तमान युग में भी इन पुरातन पुरुष ऋषभ की प्रतिष्ठा और उपासना समानरूप से अखण्डित रही है । इन्हीं कारणों को लेकर जैन और जैनेतर वर्ग में ऋषभ की सिर्फ जैनदेव के रूप में मान्यता का भ्रम चलता आया । ठीक-ठीक देखने पर यह महान् पुरातन पुरुष चिरकाल से चली आती हुई सारी आर्य प्रजा का सामान्य देव है, इस विषय में मुझे लेश मात्र भी शंका नहीं है । मेरी इस धारणा की पुष्टि नीचे की दो बातों से होती है । ऋषिपञ्चमी ऋषभपञ्चमी ही होनी चाहिए पहली बात ऋषिपञ्चमी के पर्व से और दूसरी बात जैनेतर वर्ग में ऋषभ की उपासना से सम्बद्ध है । भाद्रपद शुक्ला पंचमी ऋषि1. “Lt. Col. Wilford has pointed out (Asiatic Researches, Vol. III pp 295-488) the ancient communication of old India with Egypt and he has explained the urgent need of examining the ancient Hindu Geographical texts in the light of the new discoveries. In fact, his forecasts have come true. In Cyprus excavations a bronze statue of the Pauranic king Rishabhadeva ( about 1250 B. C.) was found." ( Illustrated London News, 27th August, 1949, pp. 316-17). The Hittite and the Mittani were definitely Aryan Kingdoms,' Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001054
Book TitleChar Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1989
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, History, & E000
File Size8 MB
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