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________________ २४ आगम-युग का जैन- वर्शन श्वेताम्बरों के दोनों सम्प्रदायों के अंगबाह्य ग्रंथों की और तद्गत अध्ययनों की सूची को देखने से स्पष्ट हो जाता है, कि उक्त १४ दिगम्बर मान्य अंगबाह्य आगमों में से अधिकांश श्वेताम्बरों के मत से सुरक्षित हैं । उनका विच्छेद हुआ ही नहीं । दिगम्बरों ने मूलआगम का आगम जितना ही महत्त्व दिया है, प्रसिद्ध चार अनुयोगों में विभक्त किया है । वह इस प्रकार है १. प्रथमानुयोग - पद्मपुराण लोप मान कर और उन्हें जैन ४. भी कुछ ग्रन्थों को वेद की संज्ञा देकर ( रविषेण ), हरिवंशपुराण ( जिनसेन ), आदिपुराण ( जिनसेन), उत्तरपुराण ( गुणभद्र ) । २. करणानुयोग - सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, जयधवल । ३. द्रव्यानुयोग - प्रवचनसार, समयसार, नियमसार, पञ्चास्तिकाय, ( ये चारों कुन्दकुन्दकृत ) तत्त्वार्थाधिगम सूत्र ( उमास्वाति कृत) और उसकी समन्तभद्र, पूज्यपाद, अकलङ्क, विद्यानन्द आदि कृत टीकाएँ, आप्तमीमांसा ( समन्तभद्र ) और उसकी अकलङ्क, विद्यानन्द आदि कृत टीकाएँ । चरणानुयोग - मूलाचार ( वट्टकेर ), त्रिवर्णाचार, रत्नकरण्ड श्रावकाचार४४ । इस सूची से स्पष्ट है, कि इस में दशवीं शताब्दी तक लिखे गए ग्रंथों का समावेश हुआ है । Jain Education International स्थानकवासी के आगम-ग्रन्थ : श्वेताम्बर स्थानकवासी संप्रदाय के मत से दृष्टिवाद को छोड़ कर सभी अंग सुरक्षित हैं । अंगबाह्य के विषय में इस संप्रदाय का मत है. कि केवल निम्नलिखत ग्रंथ ही सुरक्षित हैं । ४३ अनुपलब्ध है. ४४ जैनधर्म पृ० १०७ हिस्ट्री ओफ इन्डियन लिटरेचर भा० २ पू० ४७४. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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