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________________ २२ भागम-युग का जैन-दर्शन सत्यप्रवाद पूर्व से और शेष अध्ययनों की रचना नवम प्रत्याख्यान पूर्व के तृतीय वस्तु से हुई है । इसके रचयिता शय्यंभव हैं। ३. आचार्य भद्रबाहु ने दशाश्रुतस्कंध, कल्प और व्यवहार सूत्र , की रचना प्रत्याख्यान पूर्व से की है। ४. उत्तराध्ययन का परीषहाध्ययन कर्मप्रवाद पूर्व से उद्धृत है। इनके अलावा आगमेतर साहित्य में विशेष कर कर्म साहित्य का अधिकांशा पूर्वोद्धृत है, किन्तु यहाँ अप्रस्तुत होने से उनकी चर्चा नहीं की जाती है। द्वादश अंग: ___ अब यह देखा जाए, कि जैनों के द्वारा कौन-कौन से ग्रन्थ वर्तमान में व्यवहार में आगमरूप से माने गए हैं ? जैनों के तीनों सम्प्रदायों में इस विषय में तो विवाद है ही नहीं, कि सकल श्रुत का मूलाधार गणधर ग्रथित द्वादशांग है, तीनों सम्प्रदाय में बारह अंगों के नाम के विषय में भी प्रायः एक मत है । वे बारह अंग ये हैं १. आचार २. सूत्रकृत ३. स्थान ४. समवाय ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति ६. ज्ञातधर्मकथा ७. उपासकदशा ८. अंतकृद्दशा है. अनुत्तरोपपातिकदशा १०. प्रश्नव्याकरण ११. विपाक १२. दृष्टिवाद । तीनों सम्प्रदायों के विचार से अन्तिम अंग दृष्टिवाद का सर्वप्रथम लोप हो गया है। दिगम्बर मत से श्रुत का विच्छेद : दिगम्बरों का कहना है, कि वीर-निर्वाण के बाद श्रुत का क्रमशः ह्रास होते होते ६८३ वर्ष के बाद कोई अंगधर या पूर्वधर आचार्य रहा ही नहीं। अंग और पूर्व के अंशमात्र के ज्ञाता आचार्य हुए । अंग और पूर्व के अंशधर आचार्यों की परम्परा में होने वाले पुष्पदंत और भूतबलि आचार्यों ने षट्खण्डागम की रचना दूसरे अग्रायणीय पूर्व के अंश के आधार से की, और आचार्य गुणधर ने पांचवें पूर्व ज्ञान-प्रवाद के अंश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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