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________________ न्यायभा० न्यायसू० न्याया० टिप्पण (णी) पंचा० पंचास्ति प्रमाणन० प्रमाणमी० प्रवचन० प्रशस्त ० प्रश्नो० प्रस्तावना प्राकृतव्या० बृहदा ० बहत्० भग० भावप्रा० माण्डूक्यों ० माण्डू० माध्य ० मुण्डको ० मोक्षप्रा० योग० विशेषा० वोरनि० वैशे० श्वेता० संयुक्त संयुत्तनि० सम्मति० समय ० समयसार तात्पर्य ० सर्वार्थ ० Jain Education International ( २२ ) न्यायसूत्र भाष्य न्यायसूत्र न्यायावतारवार्तिकवृत्ति के टिप्पण पंचास्तिकाय 33 प्रमाणनयतत्वालोक प्रमाणमीमांसा प्रबचनसार प्रशस्तपादभाष्य प्रश्नोपनिषद् न्यायावतार वार्तिकवृत्ति की प्रस्तावना प्राकृत व्याकरण, आ० हेमचन्दकृत बृहदारण्यकोपनिषद् बृहत्कल्पसूत्रभाष्य भगवती सूत्र भावप्राभृत माण्डूक्योपनिषद् 31 माध्यमिककारिका मुण्डकोपनिषद् मोक्षप्राभृत योगसूत्र विशेषावश्यक भाष्य वीरनिर्वाण संवत् और जैनकाल गणना (श्री कल्याणविजयजी) वैशेषिकसूत्र श्वेताश्वतरोपनिषद् संयुत्तनिकाय " सन्मतितर्कप्रकरण समयसार समयसार तात्पर्यटीका सर्वार्थसिद्धि ( तत्त्वार्थटीका ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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