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________________ पांच आगमोत्तर जैन-दर्शन जैन आगम और सिद्धसेन के बीच का जो जैन साहित्य है, उसमें दार्शनिक दृष्टि से उपयोगी साहित्य आचार्य कुन्दकुन्द का तथा वाचक उमास्वाति का है । जैन आगमों की प्राचीन टीकाओं में उपलब्ध नियुक्तियों का स्थान है । उपलब्ध नियुक्तियों में प्राचीनतर नियुक्तियों का समावेश हो गया है और अब तो स्थिति यह है, कि प्राचीनतर अंश और भद्रबाहु का नया अंश इन दोनों का पृथक्करण कठिन हो गया है । आचार्य भद्रबाहु का समय मान्यवर मुनि श्री पुण्यविजय जी ने विक्रम छठी शताब्दी का उत्तरार्ध माना है । यदि इसे ठीक माना जाए, तब यह मानना पड़ता है कि नियुक्तियाँ अपने वर्तमान रूप में सिद्धसेन के बाद की कृतियाँ हैं । अतएव उनको सिद्धसेन पूर्ववर्ती साहित्य में स्थान नहीं । भाष्य और चूर्णियाँ तो सिद्धसेन के बाद की हैं ही । अतएव सिद्धसेन पूर्ववर्ती आगमेतर साहित्य में से कुन्दकुन्द और उमास्वाति के साहित्य में दार्शनिक तत्त्व की क्या स्थिति थी - इसका दिग्दर्शन यदि हम कर लें, तो सिद्धसेन के पूर्व में जैनदर्शन की स्थिति का पूरा चित्र हमारे सामने उपस्थित हो सकेगा और यह हम जान सकेंगे, कि सिद्धसेन को विरासत में क्या और कितना मिला था ? वाचक उमास्वाति की देन : वाचक उमास्वाति का समय पण्डित श्री सुखलाल जी ने तीसरी चौथी शताब्दी होने का अनुमान किया है । आचार्य कुन्दकुन्द के समय में १ महावीर जैनविद्यालय रजतस्मारक पृ० १६६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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