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________________ १६२ भागम-युग का जैन-वर्शन आगम के भेद एक अन्य प्रकार से भी किए गए हैं१. आत्मागम २. अनन्तरागम ३. परम्परागम सूत्र और अर्थ की अपेक्षा से आगम का विचार किया जाता है। क्योंकि यह माना गया है, कि तीर्थकर अर्थ का उपदेश करते हैं, जब कि गणधर उसके आधार से सूत्र की रचना करते हैं । अतएव अर्थरूप आगम स्वयं तीर्थंकर के लिए आत्मागम है और सूत्ररूप आगम गणधरों के लिए आत्मागम है। अर्थ का मूल उपदेश तीर्थंकर का होने से गणधर के लिए वह आत्मागम नहीं, किन्तु गणधरों को ही साक्षात् लक्ष्य करके अर्थ का उपदेश दिया गया है। अतएव अर्थागम गणधर के लिये अनन्तरागम है,गणधर शिष्यों के लिये अर्थरूप आगम परम्परागम है क्योंकि तीर्थंकर से गणधरों को प्राप्त हुआ और गणधरों से शिष्यों को । सूत्ररूप आगम गणधर शिष्यों के लिए अनन्तरागम है, क्योंकि सूत्र का उपदेश गणधरों से साक्षात् उनको मिला है । गणधर शिष्यों के बाद में होने वाले आचार्यों के लिए सूत्र और अर्थ उभयरूप आगम परम्परागम ही है आत्मागम, अनन्तरागम, परम्परागम तीर्थंकर अर्थागम गणधर सूत्रागम अर्थागम गणधर-शिष्य x सूत्रागम अर्थागम गणधर-शिष्य x ___x सूत्रागम, अर्थागम आदि मीमांसक के सिवाय सभी दार्शनिकों ने आगम को पौरुषेय ही माना है और सभी ने अपने-अपने इष्ट पुरुष को ही आप्त मानकर अन्य को अनाप्त सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। अन्ततः सभी को दूसरों के सामने आगम का प्रामाण्य अनुमान और युक्ति से आगमोक्त बातों की संगति दिखाकर स्थापित करना ही पड़ता है। यही कारण है कि नियुक्तिकार ने आगम को स्वयंसिद्ध मानकर भी हेतु और उदाहरण की आवश्यकता, आगमोक्त बातों की सिद्धि के लिए स्वीकार की है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001049
Book TitleAgam Yugka Jaindarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Education, B000, & B999
File Size17 MB
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