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प्रागम-युग का जैन-दर्शन
४. अवयवेन-अवयव से अवयवी का अनुमान करना । यथा२९, सींग से महिष का, शिखा से कुक्कुट का, दाँत से हस्ती का, दाढा से वराह का, पिच्छ से मयूर का, खुरा से अश्व का, नख से व्याघ्र का, बालाग्र से चमरी गाय का, लांगूल से बन्दर का, दो पैर से मनुष्य का, चार पैर से गो आदि का, बहु पैर से गोजर आदि का, केसर से सिंह का, ककुभ से वृषभ का, चूडी सहित बाहु से महिला का, बद्ध परिकरता से योद्धा का, वस्त्र से महिला का, धान्य के एक कण से द्रोण-पाक का और एक गाथा से कवि का।
५. आश्रयेण- (आश्रितेन) आश्रित वस्तु से अनुमान करना, यथा धूम से अग्नि का, बलाका से पानी का, अभ्र-विकार से वृष्टि का और शील समाचार से कुलपुत्र का अनुमान होता है ।
___अनुयोग द्वार के शेषवत् के पांच भेदों के साथ अन्य दार्शनिक कृत अनुमान भेदों की तुलना के लिये नीचे नकशा दिया जाता है
वैशेषिक अनुयोगद्वार योगाचारभूमिशास्त्र धर्मकीर्ति १ कार्य १ कार्य १ कार्य-कारण
१ कार्य २ कारण २ कारण ३ संयोगी ३ आश्रित
२० महिसं सिंगेण, कुक्कुडं सिहाए, हत्थि विसाणेणं, वराहं दाढाए, मोरं पिच्छेणं, प्रासं सुरेणं, वग्धं नहेणं, चरिं वालग्गेणं, वाणरं लंगुलेणं, दुपयं मणुस्सादि, चउपयं गवमादि, बहुपयं गोमियादि, सीहं केसरेणं, बसहं कुक्कुहेणं, महिलं वलयबाहाए, गाहा-- परिभरबंषेण भडं जाणिज्जा महिलिनं निवसणेणं । सित्थेण दोगपागं, कवि च एक्काए गाहाए॥"
२८ "अग्गि धूमेणं, सलिलं बलागेणं वुट्ठि अन्भविकारेणं, कुलपुत्तं सोलसमायारेणं।"
२९ वैशे० ९. २. १ । 3° J. R. A. S. 1929, P. 474.
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