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भागम-युग का जैन-दर्शन
कहा है। यही मत चरक और मूलमाध्यमिककारिका के टीकाकार पिङ्गल (?) को भी मान्य था। शबर भी वही उदाहरण देता है ।
माठर भी कार्य से कारण के अनुमान को पूर्ववत् मानता है, किन्तु उसका उदाहरण दूसरा है—यथा, नदीपूर से वृष्टि का अनुमान ।
अनुयोग द्वार के मत से धूम से वह्नि का ज्ञान शेषवदनुमान के पांचवे भेद 'आश्रयेण' के अन्तर्गत है ।
माठरनिर्दिष्ट नदीपूर से वृष्टि के अनुमान को अनुयोग में अतीतकाल ग्रहण कहा है और वात्स्यायन ने कार्य से कारण के अनुमान को शेषवद् कहकर माठरनिर्दिष्ट उदाहरण को शेषवत् बता दिया है।
पूर्व का अर्थ होता है, कारण । किसी ने कारण को साधन मानकर, किसी ने कारण को साध्य मानकर और किसी ने दोनों मानकर पूर्ववत् की व्याख्या की है अतएव पूर्वोक्त मतवैविध्य उपलब्ध होता है। किन्तु प्राचीन काल में पूर्ववत् से प्रत्यभिज्ञा ही समझी जाती थी, यह अनुयोगद्वार और उपायहृदय से स्पष्ट है।
___ न्यायसूत्रकार को पूर्ववत्' अनुमान का कैसा लक्षण इष्ट था, . उसका पता लगाना भी आवश्यक है। प्रोफेसर ध्रुव का अनुमान है कि न्यायसूत्रकार ने पूर्ववत् आदि शब्द प्राचीन मीमांसकों से लिया है और उस परम्परा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि पूर्व का अर्थ कारण और शेष का अर्थ कार्य है। अतएव न्यायसूत्रकार के मत में पूर्ववत् अनुमान कारण से कार्य का और शेषवत् अनुमान कार्य से कारण का है२२। किन्तु न्यायसूत्र की अनुमान परीक्षा के (२.१.३७) आधार पर प्रोफेसर ज्वालाप्रसाद ने२३ पूर्ववत् और शेषवत् का जो अर्थ स्पष्ट किया
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१९ सूत्रस्थान अ० ११ श्लोक २१ । २० Pre Dinnaga Buddhist text. Intro. P. XVII. २१ १.१.५। २२ पूर्वोक्त व्याख्यान पृ० २६२-२६३ । 23 Indian Epistemology p. 171.
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