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पर भी पड़ी ही रहती । मेरा उन्हें हृदय से आशीर्वाद है । मुझे विश्वास है, रमेशचन्द्र ने इस कार्य को अपना कर्तव्य समझकर बड़ी लगन से किया है।
प्रस्तुत पुस्तक के सम्पादन एवं मुद्रण में पूज्य विजय मुनि ने जो परिश्रम किया है एतदर्थ मैं उनका तथा सतत प्रेरणा देने वाले पूज्य उपाध्याय अमर मुनि जी का विशेष रूप से आभारी हूँ।
___ "सिंघी जैन सीरीज,-भारतीय विद्याभवन, बम्बई के संचालकों ने प्रस्तावना के प्रंश को प्रकाशित करने की स्वीकृति दी है, एतदर्थ मैं आभारी हूँ। इस पुस्तक में जो कुछ कमी है, उसका परिज्ञान मुझे तो है ही, किन्तु विद्वानों से निवेदन है, कि वे भी इसमें संशोधन के लिए सुझाव दें। विद्वानों के सुझाव आने पर मैं उनका उपयोग पुस्तक के अगले संस्करण में कर सकूँगा।
दलसुख मालवणिया
अहमदाबाद ता० ४-६-६५
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