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प्रस्तावना।
अस्तिस्य न हो। किन्तु क्षेत्रकी दृष्टिसे लोक सान्त है क्योंकि सकलक्षेत्रमें से कुछ ही में 'लोक है अन्यत्र नहीं ।
इस उद्धरणमें मुख्यतः सान्त और अनन्त शब्दोंको लेकर अनेकान्तवादकी स्थापना की गई है । भगवान् बुद्धने लोककी- सान्तता और अनन्तता दोनोंको अव्याकृत कोटिमें रखा है । तब भगवान् महावीरने लोकको सान्त और अनन्त अपेक्षाभेदसे बताया है ।
अब लोककी शाश्वतता-अशाश्वतताके विषयमें जहाँ भ० बुद्धने अव्याकृत कहा वहाँ भ० महावीरका अनेकान्तवादी मन्तव्य क्या है उसे उन्हीके शब्दोंमें सुनिये:
"सासए लोए जमाली!जन्न कयाविणासी;णो कयाविण भवति, णकयाविण भविस्सइ, भुवि च भवा य भविस्सह य, धुवे णितिए सासए अक्खए अन्वए अवट्ठिए णिधे ।
असासए लोए जमाली ! जो ओसप्पिणी भवित्ता उस्सप्पिणी भवर, उस्सप्पिणी भवित्ता थोसप्पिणी भवहा" भग०९.६.३८७ । ___ जमाली अपने आपको अर्हत् समजता या किन्तु जब लोककी शाश्वतता-अशाश्वतताके विषयमें गौतम गणधरने उससे प्रश्न पूछा तब वह उत्तर न दे सका, तिसपर भ० महावीरने उपर्युक्त समाधान यह कह करके किया कि यह तो एक सामान्य प्रश्न है । इसका उत्तर तो मेरे छपस्थ शिष्य भी दे सकते हैं।
जमालि ! लोक शाश्वत है और अशाश्वत मी। त्रिकालमें ऐसा एक भी समय नहीं जब लोक किसी न किसी रूपमें न हो अत एव वह शाश्वत है। किन्तु वह अशाश्वत भी है क्योंकि लोक हमेशा एकरूप तो रहता नहीं । उसमें अवसर्पिणी और उत्मर्पिणीके कारण अवनति और उन्नति में देखी जाती है । एकरूपमें - सर्वथा शायत में परिवर्तन नहीं होता अत एव उसे अशाश्वत भी मानना चाहिए। (३) लोक क्या है?
प्रस्तुतमें लोकसे म० महावीरका क्या अभिप्राय है यह भी जानना जरूरी है। उसके लिये नीचेके प्रश्नोतर पर्यास हैं।
"किमियं भंते ! लोपत्ति पवुबह?" "गोयमा! पंचस्थिकाया, एस णं एवतिए लोएसि पयुचर । तं जहा धम्मस्थिकाए आहम्मस्थिकाए जाव (मागासस्थिकाए जीवस्थिकाए)पोग्गलस्थिकाए।"
भग० १३.४.४८१॥ अर्थात् पांच अतिकाय ही लोक है। पांच अस्तिकाय ये हैं -धर्मास्तिकाय, अधर्माखिकाय, भाकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पहलास्तिकाय । (४) जीव-शरीरका मेदामेद।।
जीव और शरीरका भेद है या अमेद इस प्रश्नको मी भ० बुद्धने अव्याकृत कोटिमें रखा है । इस विषयमें भगवान महावीरके मन्तब्यको निम्न संघादसे जाना जा सकता है
कोकका मतलब है पंचाखिकाय । पंचालिकाय संपूर्ण आकाशक्षेत्रमें नहीं किन्तु जैसा उपर बताया गया है असंख्यावकोटाकोटी पोजन की परिधि है।
न्या. प्रस्तावमा ३
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