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________________ निरासम्बन निर्णय निर्विकल्प निय (मग) परमाणु परमाणुपु - का प्रत्यक्ष परिणाम परोक्ष -के तीन मत -मेद परोक्षार्थ पर्याय पर्यायदृष्ट पर्यायनय पारमार्थिक सत्य पुत्रकद्रव्य पुत्र परावर्त पुरुषकर्म पूर्वपरव्याघात प्रकृति १६१, १६२, १६६, २५० १५० -चार प्रकार Jain Education International प्रकृत्यन्तरविज्ञान प्रतिक्षा प्रतिषेधविश प्रत्यक्ष प्रत्यभिज्ञा प्रत्यभिज्ञान २८३ १९२, १९४-१९०, १३३,२६०,२८९ प्रपञ्च प्रमाण १३. टिप्पणगत शब्दों और विषयोंकी सूची । १६४,२५९,२३७ २०१ १९० २७६ १४४, २५४, २५७, २५८, ૨૦૧ २०२ २६९ २३४ १४०, १६७,२१२, २१३, २३६,२१९,२२०, २२३,१२६, २५९,२६० - भगवान् १९४ १९६ २५४, २७७ २१३,२२० २६८ २१३ १३९,१४५ - प्रादेशिक -विशदल -बीदकृतलक्षण - जैनादिका -स्पष्टता मौर विशदवा में भेद २३८, -भेद - सांव्यवहारिक २१५ १५५ २८२ १९५ न्या० ४२ २६८ १६५ -बुद बौद्ध संमत निर्विकल्प नैयायिकाभित - सामग्रीहर - इन्द्रिय -लक्षणचर्चा -आत्मव्यापार १५३ १५३ - व्यावहारिक और पारमार्थिक - अनेकान्त - प्रसिद्ध है २४९ २३७ ૨૮ प्रयोजनादिजय २३८ प्रवर्तकरव २४१ मनसामध्ये २०४ |प्रसिद्धार्थयाति २४०,२६० प्रातिभ २२३,२२४,२२६ १२६, १२७ १२७ १४० १६३ १७२ 108 १७४ -कृतव्यवहार -के नियामक 108 "ज्ञान यधभव - सारूप्य - संप्लव और विप्लव२११, २१५ २६५ बाधारहि तत्व १२५,१३५,१४० बाझा - मेदका नियामक क्या है २१० -का अभाव २११ | ब्रह्म -फल मा जैन २१५, ११८ ब्राह्मणस्वजाति वैवाधिक वैशेषिक २१५ मे सथता कान्तात्मकता १४६ १४६ १९ प्रमाणविष दिमागसंमत २११ धर्मकीर्तिम संमत २१२, जैन संमत ११५ प्रति २१८ मंग १४०, २६५ मति के मेदसे मतिज्ञान प्रमिति प्रमेव दोमेद २० प्रमाण भेद २१०, २११, धर्मकीर्ति एक २११ नम मवकी ज्ञानकी तुही २१३ पंच अपेक्षासे अपेक्षासे प्रॉप करव १२७ | प्रामाण्य के विषय में नानामव शायाचा ३२९ आध्यात्मिक और व्यावहारिक १४ मह १४वैषामिव १४८ ज्ञानग्राहकाना १४८, बौद का नियामक क्या १४८, मीमांसक, जैव धर्माद १४९ -१५१ काजव्यापार 142, # # 148, 111, बेदका १८६, चिन्वा १७२, छविप्रतिपचि साचार्यकी विशेषता २६४ अमेदप २६६ बाधक १७४ १७४ 140,148 949 १९२ २४९ २५८ -का निषेध २१६, मन्त्रत्व २१६ की मने महेर २४८ -२०६६ भामामान्य २४९ १३५ २५८ मानसप्रत्यक्ष १३० -स्वसंवेदन है १३५ माया १५१ मध्यान १६२ For Private & Personal Use Only -की प्रत्यक्षा १५३ 169 -२००,१०३,१२६ २२६,२४४ २४३ १५४ २४८ १८५ १२६ ૧૨ -१५६, १५७ १५७ १२६ २०६,२०१ २४८ 200,101,100 का अपराक्षिके मवबभाव १५७ -- मोरारि १५८ -मानसाची हि १५९ - चार्वाककी अख्याति ११० सत्ययाति - माध्यमिकी १६१ www.jainelibrary.org
SR No.001047
Book TitleNyayavatarvartik Vrutti
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorShantyasuri, Dalsukh Malvania
PublisherSaraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages525
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Nyay, Philosophy, P000, & P010
File Size11 MB
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