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________________ १८१ [०१७...किन्तु दोनोंकी क्षणिकताकी कल्पना मी बनान-पासमानका अन्तर योगाचारने रिपवादरूपसे गर्वक्षणिकताका सिद्धान्त स्थिर किया है। उसके मतमें सत्ल और क्षणिकताकी व्याप्ति है। इसके विरुद्ध सर्वातिवादियोंके मतसे सत् की त्रैकालिक बस्तिपसे व्याति है। जो सत् है अर्थात् वस्तु है वह तीनों कालमें गति है। 'सर्व' वस्तुको तीनों काल में 'बखि' माननेके कारण ही उस वादका नाम सर्वास्तिवाद पग' है। वस्तुकी विभिन्न अवसाएँ है अनित्य हैं क्षणिक हैं', वस्तु तो त्रिकालवर्ति होनेके कारण निस्स है। सर्वास्तिवादिओंने रूपपरमाणुको निस्स मानकर उसीमें पृथ्वी, अप, तेज और वायुरुप होनेकी शक्ति मानी है। यही मत जैनों का भी है । और सांख्यों का मी यही मत है कि एक ही प्रधानमें पांचोंभूतरूपसे आविर्भूत होनेकी योग्यता है । मूलतत्त्व एक ही है। सर्वास्तिवादी, जैन और सांख्य ये तीनों मूलतत्त्वको समान रूपसे निस मानते हैं। सर्वास्तिवादिनोंने नैयायिकोंके समान परमाणुसमुदायजन्य अवयवीको अतिरिक्त नही किन्तु परमाणुसमुदायहीको अवयवी माना है । दोनोंने परमाणुको निस मानते हुए मी समुदाय और अक्यवीको अनिस माना है । सर्वातिवादिओंने एक ही परमाणुकी बन्य परमाणुके संसर्गसे नाना अवस्थाएँ मानी है और उन्ही नाना अवलाओंको या समुदायोंको अनिल माना है, परमाणुको नहीं। . सर्वास्तिवादका यह परमाणुसमुदायवाद साक्ष्योंके प्रकृति-परिणामवादसे, जैनोंके द्रव्यपर्यायवादसे और मीमांसकोंके अवस्था-अवस्थातावादसे जितना अधिक सन्निकट है उतनाही अधिक दूर वह योगाचारके क्षणिकैकान्तवादसे है । परमाणुसमुदायकी क्षणिकताको योगाचारने तर्ककी भूमिका पर लेजाकर क्षणिकैकान्तवादकी कोठिमें रख दिया और परमाणुकी वास्तविक नित्यताको काल्पनिक सन्तानमें सन्निहित कर दिया । परिणाम यह हुआ कि सर्वास्तिवाद और योगाचारका मार्ग अत्यन्त विरुद्ध हो गया । भगवान बुद्धके एकही अनित्यताके उपदेशको एकने समुदायमे घटाया तो दूसरोंने सर्व वस्तुओं में स्थापित किया। सर्वास्तिवादका समावेश हीनयानमें किया जाता है । महायानी विज्ञानवाद' और माध्यमिकोंके संवृतिसत्य और पारमार्थिक सत्यके सिद्धान्तको अश्वघोषने फुट किया है। और अधिक तर्कसंगत करके उस सिद्धान्तको भूततयतावादमें उसने परिणत कर दिया है। इस भूततयतावादको महायानके अन्यवादोंकी तुलनामें उच्च स्थान प्राप्त है । इतना ही नही किन्तु वह वाद संपूर्ण विकसित महायान समझा जाता है । इस भूततयतावादका प्रतिपादन अश्वघोषने अपने अन्य Awakening of Faith (श्रद्धोत्पादशास्त्र')में किया है। १. तत्त्वसं०का० ३९१-३९४। २. It means rather the doctrine which lays down that substance of all things has a permanent existance throughout the three divisions of time." Systems of Buddhistic Thought. p. 103. ३. बही p. 134,137 etc. .वही पृ० १२५। ५.वही पृ० १२१,१३७ आदि । .Systems of Buddhistic Thought. p. 252. ७. मूलसंस्कृत प्रन्थ लुस है। परमार्थ मौर शिक्षानन्दके चीनी अनुवादके आधारसे सुजूकीने अंग्रेजी अनुवाद किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001047
Book TitleNyayavatarvartik Vrutti
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorShantyasuri, Dalsukh Malvania
PublisherSaraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages525
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Nyay, Philosophy, P000, & P010
File Size11 MB
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