SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 291
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३८ जिणसेहरसावयं पइ सुलससावयकाराविया 2665. रयणाईपुढवीसुं गएण नेरइयभावपत्तेणं । बहुसो विहियं वेरं तस्स वि मिच्छुक्कडं देहि ॥ ६१॥ 2666. इय चउगइपत्तेणं चउरासीजोणिलक्खगहणम्मि । मिच्छाउक्कडमणहं देहि कयं जेहिं सह वेरं ॥ ६२॥ 2667. उवसमभावम्मि ठिओ खित्तो जेणेह कूवमज्झम्मि। ___ तं पि खमावेहि तुम एसो ते खामणाकालो ॥ ६३॥ [गा. ६४-७२. वेयणासहणाइओ अणसणोवएसो] 2668. समसत्तु-मित्तभावो विसहेजसु वेयणं इमं जेण । एसो सो कसवट्टो वट्टइ गुरुवयणकरणम्मि ॥ ६४ ॥ 2669. जइ वेयणासमूहे वट्टतो विसहिऊण तं सम्मं । आराहणापडागं हरसि तो होसि तं सूरो ॥ ६५॥ 2670. इय बहुविहविग्घाणं मज्झम्मि ठिओ रणम्मि सुहडो ब्व । 'गिण्हेहि जयपडागं आराहेंतो जिणिदपहुं ॥६६॥ 2671. इय किं बहुणा ? सुपुरिस ! जह रंजसि माणसाइं पाणीणं । तह आराहेहि तुम मा होहिसि कायरो किंचि ॥६७॥ 2672. चेइयपूयाईयं भावेणं कुणसु, तह य आहारं । वोसिर चउन्विहं पि हु तिविहं तिविहेण धीर ! तुमं ॥६८॥ 2673. पावेसि जेण सग्गे इंदत्तं, आगमे जओ भणियं । पावइ सुहभावगओ अणसणमरणेण इंदत्तं ॥ ६९॥ 2674. भावेहि भावणाओ अणिच्चयाईओ तह य बारस वि । वित्थरणवकारं पि य सुणेह भावेह चित्तेण ॥ ७० ॥ 2675. अह वित्थरं न सक्कसि, तो संखेवेण जिणणवकारं । 'असिआउसा नमो' त्ति य भावेहि इमं पयत्तेणं ॥७१॥ १. गिण्हसु जयप्पडायं शान्तिनाथचरित्र ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy