SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६. आराहणा [गा. ५० -५१. आलोयणा वउच्चारो य] 2654. तव - नियम - संजम रहे पंचनमुक्कारसारहिनिउत्ते । णाण - वरचरणतुरए आरुहिउं जाहि सिवणयरे ॥ ५० ॥ 2655. आलोएहि य सुपुरिस ! पुरओ सिद्धाण सव्वदुच्चरियं । उच्चारेहि सयं चि महव्वयाई महाभाग ! ॥ ५१ ॥ [गा. ५२ - ६३. सन्त्रजीवखामणोवएसो] 2656. खामेहि सव्वजीवे संसारत्थे तहेव सिद्धे य । मत्तीभावमुवगओ पयच्छ मिच्छुक्कडं सोम्म ! ॥ ५२ ॥ 2657. पुढवि - जल-जल - मारुय - वणस्सईसुं गएण जे के वि । दुक्खाविया उ तुमए पयच्छ मिच्छुक्कडं तेसिं ॥ ५३ ॥ 2658. बेइंदिय-ते इंदिय - चउरिंदियकायमुवगएण तए । जे के विदुद्दे ठविया खामसु सव्वे वि ते इहि ॥ ५४ ॥ 2659. जलयर - थलयर - खहयरगएण पंचिंदिएसु विविहेसु । जे के विहु दुक्खविया जीवा खामेहि ते सव्वे ॥ ५५ ॥ 2660. बहुतक्कचक्क मच्छग - गोहिय - मयराइजलयर जिएसु । जे के वि दुम्मिया ते खामेहि समुट्ठिओ सव्वे ॥ ५६ ॥ 2661. दुपय-चउप्पय- बहुपय- अपयाईथलयरेसु जीवेसु । जे के विवेरभावे ठविया खामेहि ते वि तुमं ॥ ५७ ॥ 2662. अंडय -लोमय-चम्मय सामुग्गय - विययपक्खिमाईसु । सव्वेसु खयरेसुं खामसु जे दूमिया तुमए ॥ ५८ ॥ 2663. कम्मा - Sक्रम्मय - अंतरदीवयमणुएस मज्झपत्तेण । मण - वाया काहिं जे दुम्मिया ते वि खामेहि ॥ ५९ ॥ 2664. भवणवइ-वाणमंतर - जोइस - वेमाणि सु देवेसु । जेहिं कथं सह वेरं तुम खामेहि ते सव्वे ॥ ६० ॥ १. नाणचरणव सहजुते तथा नाण-वरचरणजुते इतिपाठद्वयं शान्तिनाथचरित्रे ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only २३७ www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy