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२०८ सिरिउज्जोयणसूरिविरइयकुवलयमालाकहाअंतगयं 2343. कत्थइ जलयरगिलिओ, कत्थइ पक्खीविलुत्तसव्वंगो।
कत्थइ अवरोप्परयं, कत्थ वि जंतम्मि छूढो हं ॥१५९॥ 2344. कत्थइ सत्तूहिं हओ, कत्थइ कसघायजन्जरो पडिओ'।
साहसबलेण कत्थइ मच्चू, विसभक्खणेणं च ॥१६०॥ 2345. मणुयत्तणम्मि एवं बहुसो एक्वेक्वयं मए पत्तं ।
तिरियत्तणम्मि एपिंह साहिज्जंतं णिसामेह ॥ १६१॥ 2346. रे जीव! तुमं भणिमो कायर ! मा जूर मरणकालम्मि ।
चिंतेसु इमाइं खणं हियएणाणंतमरणाई ॥१६२॥ 2347. जइया रे! पुढविजिओ आसि तुम खणण-खारमाईहिं ।
अवरोप्परसत्थेहि य अव्वो! कह मारणं पत्तो ॥१६३॥ 2348. किर जिणवरेहिं भणियं दप्पियपुरिसेण आहओ थेरो।
जा तस्स होइ वियणा पुढविजियाणं तहक्कंते ॥१६४ ॥ 2349. रे जीय ! जलजियत्ते बहुसो पीओ सि खोहिओ सुक्को ।
अवरोप्परसत्थेहिं सी-उण्हेहिं च सोसविओ ॥१६५ ॥ 2350. अगणिजियत्ते बहुसो जल-धूलि-कलिंचवरिसणिवहेणं ।
रे रे ! दुक्खं पत्तो तं सैरमाणो सहसु एहि ॥ १६६ ॥ 2351. सी-उण्हखलणदुक्खे अवरोप्परसंगमे य जं दुक्खं ।
वाउक्कायजियत्ते तं सरमाणो सहसु एहि ॥१६७॥ 2352. छेयण-फालण-डाहे मुसुमूरण भंजणे य जं मरणं ।
वणकायमुवगएणं तं बहुसो विसहियं जीव ! ॥१६८॥ 2353. तसकायत्ते बहुसो खइओ जीवेण जीवमाणो है।
अक्तो पाएहिं मओ उ सी-उण्हदुक्खेहिं ॥१६९॥ 2354. सेल्लेहिं हओ बहुसो सूयरभावम्मि तं मओ रणे ।
हरिणत्तणे वि निहओ खुरप्प-सरभिन्नपोटिल्लो ॥१७० ॥
१. भो। सामसयलेण क खे० ॥ २. °सामेसु ॥ मुकु० प्रत्य० ॥ ३. भरमाणो मुकु० प्रत्य० ॥
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