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सिरिवीरभद्दायरियविरइया
1810. विसमा जइ हुन तणा उवरिं मज्झे व हिट्ठओ वा वि । मरणं गेलण्णं वा ता गणहर-वसह - भिक्खूणं ॥ ८७८ ॥ [पारि० नि० गा० ४९ ]
1811. जत्थ य नत्थि तणाई चुण्णेहि व तत्थ केसरेहिं वा । erroriser ककारी हेट्ठि तकारं च बंधिना ॥ ८७९ ॥ [पारि० नि० गा० ५१]
1812 जाइ दिसाए गामो तत्तो सीसं तु होइ कायव्वं । उट्टंत रक्खणड्डा न नियत्तिज्जा पयक्खिणिउं ॥ ८८० ॥ [ पारि० नि० गा. ५१]
1813. चिंधडा रयहरणं दोसा उ भवे अधिकरणम्मि |
गच्छ व सो मिच्छं, राया व करिज्ज गामवहं ॥ ८८१ ॥ [पारि० नि० गा. ५३]
1814. जो जहियं सो तत्तो नियत्तई अविहिकाउसग्गं च । आगम्म गुरुसयासे कुणंति, तत्थेव न कुणंति ॥ ८८२ ॥ 1815. खमणमसज्झायं वा रायणिय - महानिनाय - नियगेसु ।
कायव्वं नियमेणं असिवादिभए न कायव्वं ॥ ८८३ ॥ 1816. अवरज्जु तओ थेरा सुत्त इत्थविसारया पलोइंति ।
खवयसरीरं, तत्तो सुहाऽसुहगईं वियाणंति ॥ ८८४ ॥ 1817 तरुसिहर गए सीसे निव्वाण, विमाणवासि थलकरणे
जोइसिय वाणमंतर समम्मि, खड्डाइ भवणवई | ८८५ ॥ 1818. जर दिवसे संचिक्खइ तमणालिंगं च अक्खयं मडयं ।
तइ वरिसाणि सुभिक्खं खेम - सिवं तम्मि रज्जम्मि ॥ ८८६ ॥ 1819. जं वा दिसमुवणीयं ससरीरं सावएहिं खवयस्स ।
तीइ दिसाइ सुभिक्खं विहार जोगं सुविहियाणं ॥ ८८७ ॥
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विजहणा ८ ॥
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