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________________ १५८ सिरिवीरभद्दायरियविरइया 1810. विसमा जइ हुन तणा उवरिं मज्झे व हिट्ठओ वा वि । मरणं गेलण्णं वा ता गणहर-वसह - भिक्खूणं ॥ ८७८ ॥ [पारि० नि० गा० ४९ ] 1811. जत्थ य नत्थि तणाई चुण्णेहि व तत्थ केसरेहिं वा । erroriser ककारी हेट्ठि तकारं च बंधिना ॥ ८७९ ॥ [पारि० नि० गा० ५१] 1812 जाइ दिसाए गामो तत्तो सीसं तु होइ कायव्वं । उट्टंत रक्खणड्डा न नियत्तिज्जा पयक्खिणिउं ॥ ८८० ॥ [ पारि० नि० गा. ५१] 1813. चिंधडा रयहरणं दोसा उ भवे अधिकरणम्मि | गच्छ व सो मिच्छं, राया व करिज्ज गामवहं ॥ ८८१ ॥ [पारि० नि० गा. ५३] 1814. जो जहियं सो तत्तो नियत्तई अविहिकाउसग्गं च । आगम्म गुरुसयासे कुणंति, तत्थेव न कुणंति ॥ ८८२ ॥ 1815. खमणमसज्झायं वा रायणिय - महानिनाय - नियगेसु । कायव्वं नियमेणं असिवादिभए न कायव्वं ॥ ८८३ ॥ 1816. अवरज्जु तओ थेरा सुत्त इत्थविसारया पलोइंति । खवयसरीरं, तत्तो सुहाऽसुहगईं वियाणंति ॥ ८८४ ॥ 1817 तरुसिहर गए सीसे निव्वाण, विमाणवासि थलकरणे जोइसिय वाणमंतर समम्मि, खड्डाइ भवणवई | ८८५ ॥ 1818. जर दिवसे संचिक्खइ तमणालिंगं च अक्खयं मडयं । तइ वरिसाणि सुभिक्खं खेम - सिवं तम्मि रज्जम्मि ॥ ८८६ ॥ 1819. जं वा दिसमुवणीयं ससरीरं सावएहिं खवयस्स । तीइ दिसाइ सुभिक्खं विहार जोगं सुविहियाणं ॥ ८८७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only विजहणा ८ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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