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________________ १५४ सिरिवीरभद्दायरियविरइया 1765. हुंकारंजलि - भमुहंजलीहिं अच्छीहिं वीरमुट्ठीहिं । सिरचालणेण य तहा सण्णं दावेइ सो खवओ ॥ ८३३ ॥ 1766 तो पडिचरया खवयस्स दिंति आराहणाइ उवओगं । जाणंति सुयहस्सा कय सण्णा तस्स माणसियं ॥ ८३४ ॥ 1767. इय समभावमुवगओ तह झायंतो पसत्थझाणं च । साहिं विसुज्झतो गुणसेटिं सो समारुहइ || ८३५ ॥ झाणं ५ ॥ [८३६-४५. समाहिलाभदारस्स छ लेसापडिदारं ] 1768. किण्हाइकम्मदव्वाण सण्णिहाणेण जीवपरिणामो । लेस त्ति मोहणीयस्स ताईं दव्वाइं नीसंदो ॥ ८३६ ॥ 1759. जंबूफलभक्खयपुरिसछक्कपरिणामभेयसंसिद्धो । हिंसादिभावऊ भण्णइ लेस त्ति परिणामो || ८३७ ॥ 1770. किण्हा नीला काऊ लेसाओ तिण्णि अप्पसत्थाओ | चयइसुविसुद्ध करणो संवेगमणुत्तरं पत्तो ॥ ८३८ ॥ 1771. तेऊ पम्हा सुक्का लेसाओ तिण्णि सुप्पसत्थाओ । उवसंपज्जइ कमसो संवेगमणुत्तरं पत्तो ॥ ८३९॥ 1772. परिणामविसुद्धीए लेसासुद्धी उ होइ जीवस्स । परिणामविसोही पुण मंदकसायस्स नायव्वा || ८४० ॥ 1773. मंदा हुंति कसाया बाहिरदव्वेसु संगरहियस्स । पावर लेसासुद्धिं तम्हा देहादिनिस्संगों ॥। ८४१ ॥ 1774 जह तंडुलस्स कुंडयसोही सतुसस्स तीरइ न काउं । तह जीवस्स न सक्का लेसा सोही संसंगस्स ॥ ८४२ ॥ 1775. उक्कोसादीठाणेसु सुद्धलेसासु वट्टमाणो सो । कालं करिज्ज जइया तारिसमाराहणं लहइ ॥ ८४३ ॥ 1776 ता लेसासुद्धीए जत्तो नियमेण होइ कायव्वो । जल्लेसो मरइ जिओ तल्लेसेसिं (? सुं) तु उववाओ ॥ ८४४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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