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सिरिवीरभद्दायरियविरइया
1716. जइ तारिसिया तण्हा छुहा य अवसेण ते तया सोढा । धम्मो तिमा सवसो कह पुण सोढुं न तीरिज्जा १ ॥ ७८४ ॥ 1717 सुइपाणएण अणुसट्टिभोयणेण य सया उवग्गहिओ । झाणोसण तिव्वा वि वेयणा तीरए सोढुं ।। ७८५ ॥ 1718. अरहुत-सिद्ध-केवलिपच्चक्खं सव्वसंघ सक्खिस्स ।
पच्चक्खाणस्स कयस्स भंजणाओ वरं मरणं ।। ७८६ ॥ 1719 जइ ता कया पमाणं अरहंतादी हविज्ज खमएण । तस्सक्खियं कयं सो पच्चक्खाणं न मंजिज्जा ७८७ ॥ 1720 सक्खिकयरायहीलणमावहइ नरस्स जह महादोसं । तह जिणवरादिआसायणा वि महदो समावहइ || ७८८ ॥ 1721. न तहा दोसं पावइ पच्चक्खाणमकरित्तु कालगओ ।
जह भंजणाओ पावइ तस्सेव अबोहिबीयकयं ॥ ७८९ ॥ 1722. संलेहणा परिस्सममिमं कयं दुक्करं च सामण्णं ।
मा अप्पसोक्खहेउं तिलोगसारं विणासेहि || ७९० ॥ 1723. धीरपुरिसपण्णत्तं सप्पुरिसनिसेवियं उवणमित्ता ।
घण्णा निरावयक्खा संथारगया विवज्जंति ॥ ७९१ ॥ 1724 इय पण्णविजमाणो तो पुव्वं जायसंकिलेसो वि ।
विणियत्तो तं दुक्खं पस्सर पर देहदुक्खं व ।। ७९२ ॥ 1725. इयमाणधणस्स महिड्डियस्स उस्सग्गियं हवे कवयं ।
अववाइयं पि कवयं आगाढे होइ कायव्वं ॥ ७९३ ॥ कवयं ३ ॥
[गा. ७९४ - ८०२. समाहिलाभदारस्स चउत्थं समयापडिदारं ] 1726 एवं अहियासिंतो सम्मं खवओ परीसहे एए ।
सव्वत्थ अपडिबद्ध उवेइ सव्वत्थ समभावं ॥ ७९४ ॥ 1727. संजोय-विप्पओगेसु चयइ इट्ठेसु वा अणिट्ठेसु । इ- अरइ - उस्सुगत्तं हरिसं दीणत्तणं च तहा ।। ७९५ ॥
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