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________________ २. आराहणापडाया 1331. उव्वत्तण- परिवत्तण-तुयट्टणुट्ठाण-निसियणाईसु । चउरो समाहिकामा अलग्गंता य विहरति ॥ ३९९॥ 1332. वज्जित्ता विकहाओ अज्झत्थविराहणीओ पावाओ । अखलियममिलियमणलियमणुञ्चमंदं अपुणरुत्तं ॥ ४०० ॥ 1333. निद्धं महुरं हिययंगमं च पल्हायणिज्ज पत्थं च । चार जणा धम्मं कहंति निचं विचित्तकहा ॥ ४०१ ॥ 1334. जुत्तस्स तवधुराए अन्भुज्जयमरणधेणुसीसम्मि । तह ते कहिंति धीरा जह सो आराहओ होइ ॥ ४०२ ॥ 1335. चत्तारि जणा भत्तं उवकप्पंति य गिलाणपाउग्गं । छंदियमवगयदोसं अपमाइणो लद्धिसंपण्णा ॥ ४०३ ॥ 1336 चत्तारि जणा पाणयमुवकप्पंति अगिलाइपाउग्गं । चत्तारि जणा रक्खंति दवियमुवकप्पियं तेहिं ॥ ४०४ ॥ 1337 काइयमाइ य सव्वं चत्तारि परिट्ठविंति खवगस्स । पडिलेहंति य उभओकालं सिज्जुवहि- संथारं ॥ ४०५ ॥ 1338. खमगस्स घरदुवारं सारक्खंति य जणा उ चत्तारि । चत्तारि समोसरणदुवारं रक्खंति जयणाए ॥ ४०६ ॥ 1339. जियनिद्दा तल्लिच्छा राओ रक्खंति तह य चत्तारि । चत्तारि गवेसंति उ खित्ते देसे पवित्तीओ ४०७॥ 1340. बाहिं असद्दपडियं कहिंति चउरो चउव्विहकहाओ । ससमय-परसमयविऊ महाणुभावा तहा चउरो ॥ ४०८ ॥ 1341. धम्म कहरक्खणट्ठा बाहिं हिंडंति पयडमाहप्पा | ते निज्जवंति खवयं अडयालीसं तु निज्जवया ॥ ४०९ ॥ 1342. कालाणुसारओ पुण चउरो चउरो कमेण हाविज्जा । जा चउरो अहवा दो हुंति जहण्णेण निज्जमया ॥ ४१० ॥ 1343. एगो जइ निज्जमओ अप्पा चत्तो परो पवयणं वा । वसणं समाहिमरणे उड्डाहो दुग्गई वा वि ।। ४११॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only ११९ www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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