SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 463
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पण्णत्ते २५८७. जे केइ देवदू से दिव्वं मे (?) दिव्वदेवसरिसिले । मुत्तूण तुमं तइया संपइ मा सुमर कंथइयं ॥ ९ ॥ २५८८. वररयणनिम्मियं पिव कणयमयं कुसुमरेणुसुकुमालं । चइऊण तत्थ देहं कुण जरदेहम्मि मा मुच्छं ॥ १० ॥ ५ २५८९. देहं असुइ दुगंधं भरियं पुण पित्त-सुक्क - रुहिराणं । रे जीव ! इमस्स तुमं मा उवरिं कुणसु पडिबंधं ॥ ११ ॥ २५९० मा कुणसु तं नियाणं सग्गे किर एरिसीओ रिद्धीओ । मा चिंतेहिं सुपुरिस ! होइ सया नेव जं जोगं (१) ॥ १२ ॥ २५९१. पुन्नं पावं च दुवे वच्चइ जीवेण णवरि सह एयं । जं पुण इमं सरीरं कत्तो तं चलइ ठाणाओ ? ॥ १३ ॥ ३०६ १० १५ २० [गा. १४-१८. देहस्स उवालंभो] २५९२. मा मे छुहा भविस्सइ इमस्स देहस्स संबलं वूढं । तेणं चिय देह ! तुमं खल ! गहिओ किं न सुकरणं १ ॥ १४ ॥ २५९३. मा मे तन्हा होही मरुत्थलीसुं पि पाणियं वूढं । तेणं चिय देह ! तुमं खल ! गहिओ किं न सुकणं १ ॥ १५ ॥ २५९४ मा मे उन्हं होही इमस्स देहस्स छत्तयं धरियं । णं चिय देह ! तुमं खल ! गहिओ किं न सुकरणं ? ॥ १६ ॥ २५९५ मा मे सीयं होही पावरियं वत्थ - कंबलसएहिं । वच्चंते पुण जीवे खलस्स कंथं पि नो चलियं ॥ १७ ॥ २५९६. बहुला लियस्स बहुपालियस्स तह सुरहिगंध-मल्लस्स । खल देह ! तुज्झ जुत्तं पयं पि नो देसि गंतव्वे ॥ १८ ॥ [गा. १९ - २५. सुहभावणा ] २५९७. सारीर - माणसेहिं दुक्खेहिं अभिद्वयम्मि संसारे । सुलहमिणं जं दुक्खं, दुलहा सद्धम्मपडिवत्ती ॥ १९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001044
Book TitlePainnay suttai Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1984
Total Pages689
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_chatusharan, agam_aaturpratyakhyan, agam_mahapratyakhyan, agam_bhaktaparigna, agam_tandulvaicharik, agam_sanstarak, agam_gacchachar, & agam_chandra
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy