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________________ २८३ १०. संथारगपइण्णयं २३८२. हायंति जस्स जोगा, जराइविविहा य हुंति आयंका । आरुहइ य संथारं सुविसुद्धो तस्स संथारो ॥ ३२॥ २३८३. जो गारवेण मत्तो नेच्छइ आलोयणं गुरुसगासे । आरुहइ य संथारं, अविसुद्धो तस्स संथारो ॥ ३३॥ २३८४. जो पुण पत्तभूओ करेइ आलोयणं गुरुसगासे । आरुहइ य संथारं, सुविसुद्धो तस्स संथारो ॥ ३४ ॥ २३८५. जो पुण दंसणेमइलो सिढिलंचरित्तो करेइ सामन्नं । आरुहइ य संथारं, अविसुद्धो तस्स संथारो ॥ ३५॥ २३८६. जो पुण दंसणसुद्धो आयचरित्तो करेइ सामन्नं । आरुहइ य संथारं, सुविसुद्धो तस्स संथारो ॥३६॥ २३८७. जो रागदोसरहिओ तिगुत्तिगुत्तो तिसल्ल-मयरहिओ । आरुहइ य संथारं, सुविसुद्धो तस्स संथारो ॥ ३७॥ २३८८. तिहिं गारवेहिं रहिओ तिदंडपंडिमोयगो पहियकित्ती। आरुहइ य संथारं, सुविसुद्धो तस्स संथारो ॥ ३८ ॥ २३८९. चउविहकसायमहणो चंउहिं विकहाहिं विरहिओ निचं । आरुहइ य संथारं, सुविसुद्धो तस्स संथारो ॥ ३९ ॥ २३९०. पंचमहन्वयकलिओ पंचसु समिईसु सुंझुमाउत्तो। आरुहइ य संथारं, सुविसुद्धो तस्स संथारो ॥ ४०॥ २३९१. छक्काया पडिविरओ सत्तभयट्ठाणविरहियमईओ। आरुहइ य संथारं, सुविसुद्धो तस्स संथारो ॥४१॥ २३९२. अट्ठमयट्ठाणजढो कम्मट्ठविहस्स खवणहेउत्ति । आरुहइ य संथारं, सुविसुद्धो तस्स संथारो ॥ ४२ ॥ १. जरा य वि सं० पु० सा०॥ २. अविसु जे० पु०॥ ३. गाथेयं सं० प्रतौ नास्ति ॥ ४. °णरहिमो सिजे०॥ ५. सढिल° पु०॥ ६. मइर जे०॥ ७. °परिमो' सं० पु०॥ ८. चउविहवि० सं०॥ ९. हाहिं वजिओ सं० पु०॥ १०. सुट्ट आउ जे० सा०॥ ११. °मइहा सं०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001044
Book TitlePainnay suttai Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1984
Total Pages689
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_chatusharan, agam_aaturpratyakhyan, agam_mahapratyakhyan, agam_bhaktaparigna, agam_tandulvaicharik, agam_sanstarak, agam_gacchachar, & agam_chandra
File Size11 MB
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