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________________ ५ पइन्नयसुत्तेसु ६२१. जो दोन्नि जीवसहिया रुंभइ संसारबंधणा पावा । रागं दोसं च तहा सो मरणे होइ कयजोगो ॥१३३॥ ६२२. जो तिण्णि जीवसहिया दंडा मण-वयण-कायगुत्तीओ। नाणंकुसेण गिण्हइ सो मरणे होइ कयजोगो ॥ १३४॥ ६२३. जो चत्तारि कसाए घोरे संसरीरसंभवे निचं । जिणगरहिएं निरंभइ सो मरणे होइ कयजोगो ॥१३५॥ ६२४. जो पंच इंदियाइं सन्नाणी विसयसंपलित्ताई। नाणंकुसेण गिण्हइ सो मरणे होइ कयजोगो ॥ १३६ ॥ ६२५. छजीवकायहियओ संत्तभयट्ठाणविरहिओ साहू। एंगतमद्दवमओ सो मरणे होइ कयजोगो ॥१३७॥ ६२६. जेण जिया अट्ठ मया गुत्तो चिये नवहिं बंभगुत्तीहिं । आउत्तो दसकैन्ने सो मरणे होइ कयजोगो ॥१३८॥" ६२७. आसायणाविराहओ आँराहिंतो सुदुलहं मोक्खं । सुक्कज्झाणाभिमुहो सो मरणे होइ कयजोगो ॥१३९॥ १. दुन्नि जे० च० क्ष०॥ २. °त्तारि निरंभइ घोरे सं० कापा० ॥ ३. घोरा कापा०॥ ४. संसारसंभ कापा०॥ ५. °ए कसाए सो सं० कापा० ॥ ६. इंदियायं स सं०। इंदिएहिं स कापा०॥ ७. इतोऽनन्तरं च. आदर्श इदं गाथायुग्ममधिकं विद्यते "अविरहिया जस्स मई पंचहि समिईहि तीहि गुत्तीहिं । न य कुणइ राग-दोसे सो मरणे होइ कयजोगो ॥१॥ पंचसमिईपहाणो पंचिंदियसंवुडो गुणसमिद्धो। एगत्तीभावगमो सो मरणे होइ कयजोगो ॥२॥" ८. °वनिकायहियो सन्त क्ष० का०। °वकायहियो तथा °वक्कायहिओ इति कापा०॥ ९. सत्त य भयठाण का०॥ सत्तभयट्ठाण कापा०॥ १०. एकंतमहवगओ सं० का० । इक्वंत कापा०॥ ११. वि हुन क्ष। वि य नवहि का०॥ १२. कज्जे मरणे सो हो' सं० जे० कापा०॥ १३. इतोऽनन्तरं का० आदर्शस्य पाठान्तरे इमे द्वे गाथे अधिके स्तः "जह सुकुपलो वि विजो अन्नस्स कहेइ अत्तणो वाहिं। विजोवएस सुच्चा पच्छा सो कम्ममायरई ॥१॥ देसं खेत्तं उ जाणित्ता वत्थं पत्तं उवस्सयं। संगहे साहवग्ग(? गं) वा सुत (त)त्थ (त्यं) च निहालई ॥२॥" १४. आराहतो का०॥ १५. मुक्खं जे० च० क्ष०॥ १६. कइजोगो सं०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001044
Book TitlePainnay suttai Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1984
Total Pages689
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_chatusharan, agam_aaturpratyakhyan, agam_mahapratyakhyan, agam_bhaktaparigna, agam_tandulvaicharik, agam_sanstarak, agam_gacchachar, & agam_chandra
File Size11 MB
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