________________
तृतीयं परिशिष्टम् - टिप्पनानि
जैसे - १/२ और १/३ है । इसका अर्थ कलासवर्ण ३/६ २ / ६ होगा ।
६. यावत् तावत् - इसे गुणकार भी कहते हैं ।
पहले जो कोई संख्या सोची जाती है उसे गच्छ कहते हैं । इच्छानुसार गुणन करने वाली संख्या को वाञ्छ या इष्टसंख्या कहते हैं ।
१४२
कहते
I
गच्छ संख्या को इष्ट - संख्या से गुणन करते हैं । उसमें फिर इष्ट मिलाते हैं । उस संख्या को पुनः गच्छ से गुणा करते हैं । तदनन्तर गुणनफल में इष्ट के दुगुने का भाग देने पर गच्छ का योग आता है । इस प्रक्रिया को 'यावत् तावत्' जैसे कल्पना करो कि इष्ट १६ है, इसको इष्ट गुणा किया १६ x १० = १६० । इसमें पुनः इष्ट १० मिलाया ( १६० + १० = १७० ) । इसको गच्छ से गुणा किया ( १७० x १६ = २७२०) इसमें इष्ट की दुगुनी संख्या से भाग दिया २७२० : २० = १३६, यह गच्छ का योगफल है । इस वर्ग को पाटीगणित भी कहा जाता है ।
१० से
७. वर्ग - वर्ग शब्द का शाब्दिक अर्थ है 'पंक्ति' अथवा 'समुदाय' । परन्तु गणित में इसका अर्थ 'वर्गघात' तथा 'वर्गक्षेत्र' अथवा उसका क्षेत्रफल होता है । पूर्ववर्ती आचार्यों ने इसकी व्यापक परिभाषा करते हुए लिखा है कि 'समचतुरस्र' (अर्थात् वर्गाकार क्षेत्र) और उसका क्षेत्रफल वर्ग कहलाता है । दो समान संख्याओं का गुणन भी वर्ग है । परन्तु परवर्ती लेखकों ने इसके अर्थ को सीमित करते हुए लिखा है- “ दो समान संख्याओं का गुणनफल वर्ग है । वर्ग के अर्थ में कृति शब्द का प्रयोग भी मिलता है, परन्तु बहुत कम । इसे समद्विराशिघात भी कहा जाता है । भिन्न-भिन्न विद्वानों ने इसकी भिन्न-भिन्न विधियों का निरूपण किया है।
-
८. घन- इसका प्रयोग ज्यामितीय और गणितीय- दोनों अर्थों में अर्थात् ठोस घन तथा तीन समान संख्याओं के गुणनफल को सूचित करने में किया गया है । आर्यभट्ट प्रथम मत है- तीन समान संख्याओं का गुणनफल तथा बारह बराबर कोणों (और भुजाओं) वाला ठोस भी घन है । श्रीधर', महावीर और भाष्कर द्वितीय का कथन है कि तीन समान संख्याओं का गुणनफल घन है । घन के अर्थ में 'वृन्द' शब्द का भी यत्र कुत्र प्रयोग मिलता है । इसे 'समत्रिराशिघात' भी कहा जाता है । घन निकालने की विधियों में भी भिन्नता है।
९. वर्ग-वर्ग- वर्ग को वर्ग से गुणा करना । इसे 'समचतुर्घात' भी कहते हैं । पहले मूल संख्या को उसी संख्या से गुणा करना । फिर गुणनफल की संख्या को गुणनफल की संख्या से गुणा करना । जो संख्या आती है उसे वर्ग वर्ग फल कहते हैं । जैसे - ४ x ४ x १६ = २५६ | यह वर्ग वर्ग फल है ।
= १६
-
१. आर्यभटीय, गणितपाद, श्लोक ३ ।। २. त्रिशतिका, पृष्ठ ५ ॥ ३. हिन्दूगणितशास्त्र का इतिहास, पृष्ठ १४७ । ४. आर्यभटीय, गणितपाद, श्लोक ३ ॥ ५. त्रिशतिका, पृष्ठ ६ ।। ६. गणित - सारसंग्रह, पृष्ठ १४ ।। ७. लीलावती, पृष्ठ ५ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org