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________________ तृतीयं परिशिष्टम् - टिप्पनानि भरतनाट्य, संगीतदामोदर, नारदीशिक्षा आदि ग्रंथों में भी मूर्च्छनाओं का उल्लेख हैं । वे भिन्न-भिन्न प्रकार से हैं । भरतनाट्य में गांधार ग्राम को मान्यता नहीं दी गई है । प्रस्तुत चार्ट से मूर्च्छनाओं के नामों में कितना भेद हैं, यह स्पष्ट हो जाता है । मूलसूत्र भरतनाट्य संगीतदामोदर नारदी शिक्षा मंगी कौरवीया हरित् रजनी. सारकान्ता सारसी शुद्धषड्जा उत्तरमंद्रा रजनी उत्तरा उत्तरायता अश्वक्रान्ता सौवीरा अभद् नंदी क्षुद्रिका पूरका शुद्धगांध उत्तरगांधारा सुष्ठुतर आयामा उत्तरायता कोटिमा षड्जग्राम की मूर्च्छनाएं ललिता Jain Education International उत्तरमंद्रा रजनी उत्तरायता शुद्धषड्जा मत्सरीकृता अश्वक्रान्ता अभिरुद्गता षण्मध्या मध्यमग्राम की मूर्च्छनाएं पंचमा मत्सरी सौवीरी हरिणाश्वा कलोपनता -शुद्धमध्या मार्गी परवी कृष्यका मध्यमा चित्रा रोहिणी मतंगजा सौवीरी गान्धार ग्राम का अस्तित्व नहीं माना है । मृदुमध्यमा शुद्धा अन्द्रा कलावती तीव्रा गन्धारग्राम की मूर्च्छनाएं सौद्री ब्राह्मी वैष्णवी खेदरी सुरा नादावती विशाला उत्तरमंद्रा अभरिद्गता अश्वक्रान्ता सौवीरा हृष्यका उत्तरायता रजनी For Private & Personal Use Only नंदी विशाला मुख चित्रा चित्रवती सुखा बला आप्यायनी विश्वचूला चन्द्रा हैमा कपर्दिनी मैत्री बार्हती १. भरतनाट्य २८।२७-३० : आद्या ह्युत्तरमन्द्रा स्याद्, रजनी चोत्तरायता । चतुर्थी शुद्धषड्जा तु, पंचमी मत्सरीकृता ॥ अश्वक्रान्ता तु षष्ठी स्यात् सप्तमी चाभिरुद्गता । षड्जग्रामाश्रिता एता, विज्ञेयाः सप्त मूर्च्छनाः । सौवीरी हरिणाश्वा च, स्यात् कलोपनता तथा ॥ चतुर्थी शुद्धमध्यमा तु मार्गवी पौरवी तथा ॥ हृष्यका चैव विज्ञेया, सप्तमी द्विजसत्तमाः । मध्यमग्रामजा ह्येता, विज्ञेयाः सप्त मूर्च्छनाः || २. नारदीशिक्षा १।२।१३,१४ ॥ ९९ www.jainelibrary.org
SR No.001029
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri, Jambuvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages588
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size11 MB
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