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________________ किञ्चत् प्रास्ताविकम् में प्रकाशित करने की हमारी विचारणा है । १-२-३ अध्ययनवाला प्रथम विभाग कुछ समय पूर्व ही प्रकाशित हो चुका है। इस द्वितीय विभाग में ४-५-६ अध्ययन आयेंगे । तृतीय विभाग में ७-८-९-१० अध्ययन और अनेक परिशिष्ट प्रकाशित होंगे । तृतीय विभाग में सटीक स्थानांगसूत्र संपूर्ण होगा। परमकृपालु अनन्त अनन्त उपकारी अरिहंत परमात्मा एवं मेरे परम उपकारी परमपूज्य सद्गुरुदेव एवं पिताश्री मुनिराजश्री भुवनविजयजी महाराज की कृपा से ही यह कार्य संपन्न हुआ है। __इस महान कार्य में मेरे शिष्य मुनिराजश्री धर्मचन्द्रविजयजी, पुंडरीकरत्नविजयजी, धर्मघोषविजयजी ने बहुत सहयोग दिया है । ___ धार्मिक, सामाजिक, राजकीय आदि विविध क्षेत्रों मे अत्यंत अग्रेसर, दीर्घदर्शी, सूक्ष्म चिंतक समाज तथा जिन शासन के परम हितैषी तथा श्री जैन शासन की उन्नति जिनका प्राण था ऐसे श्री जैन श्वे. नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ के अध्यक्ष श्री पारसमलजी भंसाली हमें यहाँ नाकोडा तीर्थ में चातुर्मास करने हेतु लाए और नाकोडा तीर्थ में विशाल प्राचीन शास्त्रसंग्रह तथा संशोधन केन्द्र बनवाने की उनकी उत्कृष्ट भावना थी। इस भावना के कारण आजभी यहाँ कार्य चल रहा है। किंतु हृदय की बाईपास सर्जरी करवाने के पश्चात् मुंबई में २६-९-२००२ के दिन उनका आकस्मिक स्वर्गवास होने से यह सटीक स्थानांगसूत्र के प्रकाशन को देखने के लिये हमारे बीच मौजुद नहीं रहे, जिसकी कमी हमें बहुत-बहुत खटक रही हैं। उन्होंने हमको जो अत्यंत उदारता तथा उत्साह से यहाँ संशोधन करने की अनुकुलता प्रदान की वह अविस्मरणीय रहेगा । इसलिये उनको बहुत बहुत अभिनंदन व धन्यवाद । मेरी परमोपकारिणी शतवर्षाधिकायु परमपूज्य माता साध्वीजी (जिन का मेरे उपर अपार आशीर्वाद है) श्री मनोहरश्रीजी महाराज की शिष्या परमसेविका साध्वीजी श्री सूर्यप्रभाश्रीजी महाराज की शिष्या साध्वीजीश्री जिनेन्द्रप्रभाश्रीजी ने इस विराट संशोधन कार्य में अति अति सहयोग दिया है। ___इस कार्य में जिन्हों ने भिन्न भिन्न रूप से सहयोग दिया है, उन सबको मेरा हार्दिक अभिनंदन एवं धन्यवाद । प्रभुकी असीम कृपा से ही संपन्न इस ग्रंथको प्रभु के करकमलों में समर्पण कर आज में धन्यता का अनुभव कर रहा हूँ। श्री जैन श्वे नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, पूज्यपादाचार्यमहाराजश्रीमद्विजयसिद्धिसूरीश्वरपट्टालंकारP.O. मेवानगर, Via बालोतरा, पूज्यपादाचार्यमहाराजश्रीमद्विजयमेघसूरीश्वरशिष्यजिला-बाडमेर, राजस्थान. पूज्यपादसद्गुरुदेवमुनिराजश्रीभुवनविजयान्तेवासी विक्रम सं० २०५९, मुनि जम्बूविजयः वैशाखशुक्लत्रयोदशी, बुधवार, ता. १४-५-२००३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001028
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri, Jambuvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages579
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size11 MB
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