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________________ ४४७ सुत्तादि सुत्तंको सुत्तंको १६५८ १५५१ ७१७ ३३१ १६१ ५५४ ३८८ १५४ उत्तरज्झयणसुत्तस्स सुत्ताणुक्कमो सुत्तादि अरूविणो जीवघणा १५१८ असुरा नाग सुवण्णा अलोए पडिहया सिद्धा १५०८ अस्सकण्णी य बोद्धन्वा अलोलुयं मुहाजीवी अस्सा हत्थी मणुस्सा मे अलोले, न रसे गिद्धे १४४८ अस्से य इति के वुत्ते ? अवइज्झिऊण माहणरूवं २८३ अह अट्टहिं ठाणेहिं अवइज्झिय मित्त-बंधवं ३२० अह अन्नया कयाई अवउज्झिऊण माहणरूवं २८३ पा० अह आसगओ राया अवसेसं भंडगं गिज्झा १०३० अह ऊसिएण छत्तेणं अवसो लोहरहे जुत्तो ६६१ अह कालम्मि संपत्ते अवसोहिय कंटगापहं ३२२ अह केसरम्मि उजाणे अवहेडियपठिसउत्तमंगे अह चोद्दसहिं ठाणेहिं अवि पावपरिक्खेवी ३३५ अह जे संवुडे भिक्खू असई तु मणुस्सेहिं २५८ अह तत्थ अइच्छंतं असमाणो चरे भिक्खू अह तायओ तत्थ मुणीण तेसिं असंखकालमुक्कोसं, अंतो-(द्वि० च.) अह तेणेव कालेणं धम्मतित्थ" कायठिई तेऊणं (तृ. च०) " " , पुरीए अह ते तत्थ सीसाणं अंतो-(द्वि० च०) अह पच्छा उइजंति कायठिई वाऊणं (तृ० च०) अह पण्णरसहिं ठाणेहिं अह पंचहिं ठाणेहि अंतो-(द्वि० च०) विजढ- अह पालियस्स घरिणी (तृ. च०) १५५६ अह भवे पइन्ना उ असंखकालमुक्कोसा "अजीवाण (तृ० च०) अहमंसि महापाणे १४६५ अह मोणेण सो भयवं अह राया तत्थ संभंतो कायठिई आऊणं (तृ० च०) अहवा तइयाए पोरिसीए १५४१ अहवा सप्परिकम्मा अह सा भमरसन्निमे कायठिई पुढवीणं (तृ० च०) अह सारही तओ भणइ १५३३ अहं सारही विचिंतेइ असंखभागो पलियस्स १६४४ अह सा रायवरकन्ना सुट्ठिया असंखयं जीविय मा पमायए ११७ ,,, , सुसीला असंखेजाणोसप्पिणीण १४०३ अह से तत्थ अणगारे असासए सरीरम्मि ६१८ अह सो तत्थ निजंतो आसासयं दट्ट इमं विहारं ४४८ अह सो वि रायपुत्तो असिप्पजीवी अगिहे अमित्ते ५१० अह सो सुगंधगंधिए असीहिं अदसिवन्नेहि अहं च भोगरायस्स ४४९ ८४१ ९५६ ८५० ९१ ३३० ७६७ ५७८ .... ११९७ ११८९ ८१७ ८०४ १०६२ ८२७ ७९४ ८०१ ८११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001026
Book TitleDasveyaliya Uttarjzhayanaim Avassay suttam
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri, Pratyekbuddha, Ganadhar
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages759
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_aavashyak, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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