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१५०२]
छत्तीसइमं जीवाजीवविभत्तिअज्झयणं ३०१ १४९४. परिमंडलसंठाणे भइए से उ वण्णओ।
गंधओ रसओ चेव भइए फासओ वि य ॥ ४२ ॥ १४९५. संठाणओ भवे वट्टे भइएं से उ वण्णओ।
गंधओ रसओ चेव भइए फासओ वि य ॥४३॥ १४९६. संठाणओ भवे तसे भइएँ से उ वण्णओ।
गंधओ रसओ चेव भइए फासओ वि य ॥४४॥ १४९७. संठाणओं य चउरंसे भइए से उ वण्णओ।
गंधओ रसओ चेव भइए फासओ वि य ॥४५॥ १४९८. जे आययसंठाणे भइएँ से उ वण्णओ।
गंधओ रसओ चेव भइए फासओ वि य ॥४६॥ १४९९. एसा अजीवविभत्ती समासेण वियाहिया।
एत्तो जीवविभत्तिं वोच्छीमि अणुपुव्वसो ॥४७॥ १५००. संसारत्था य सिद्धा य दुविहा "जीवा वियाहिया ।
सिद्धा णेगविहा वुत्ता तं मे कित्तयओ सुण ॥४८॥ १५०१. इत्थी-पुरिससिद्धा य तहेव य नपुंसगा।
सलिंगे अन्नलिंगे य गिहिलिंगे तहेव य ॥४९॥ १५०२. उक्कोसोगाहणाए य जहन्न-मज्झिमाए य ।
उड्ढं अहे य तिरियं च समुद्दम्मि जलम्मि य ॥५०॥ १. ॥ ४२ ॥ तंससंठाणे जे उ भइए से वन्नओ। गंधओ रसओ चेव भइए फा० ॥ ४३ ॥ चउरंससंठाणे ने उ भइए से वन्नओ। गंधभो रसमो चेव भइए फा० ॥४४॥ वट्टओ संठाणे जे उ भइए से वन्नओ। गंधओ रसमो चेव भइए फा० ॥ ४५ ॥ जे आययसं° ला १॥ २. °ए० ॥४३॥ ला २ पु० ॥ ३. °ए० ॥४४॥ ला २ पु०॥ ४. °ो चउ° सं१।
ओ जे च° शा०॥ ५. °ए॥४५॥ ला २ पु०॥ ६. आयए सं° सं१॥ ७. ए०॥४६॥ ला२॥ ८॥४६॥ असंखकालमुक्कोसं एक्को(?क) समयं जहन्नयं। अजीवाण रूवीणं अंतरं तं वियाहियं ॥ एसा अजी' सं १॥ ९. इत्तो सं १ सं २ विना॥ १०. वुच्छा सं १ सं २ विना, नवरं बुच्छा ला १ पु०॥ ११. जीवा भवंति उ। तत्थ णेगविहा सिद्धा ते मे कि° सं १ पाटीपा०, अत्र तत्थ स्थाने तत्था इति पाटीपा०॥ १२. "तं इति सूत्रत्वात् तान्" इति पाटी०॥ १३. °माइ य सं १ विना॥ १४. उड़ा अ° सं १। उड्ढे अ° सं २। उड्ढे अहे ति° ला१ने०॥
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