SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 365
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७२ ५ उत्तरऽज्झयणाणि [सु० १९७४१२७४. सद्दाणुगासाणुगए य जीवे' चराचरे हिंसइ णेगरूवे। चित्तेहिं ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तगुरू किलिट्टे ॥४०॥ १२७५. सदाणुवाए ण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खण-सन्निओगे। ____ वए विओगे य कहिं सुहं से संभोगकाले य अतित्तिलामे ? ॥४१॥ १२७६. सद्दे अतित्ते य परिग्गहम्मि सत्तोवसत्तो न उवेइ तुहिँ । अतुट्टिदोसेण दुही परस्स लोमांविले आययई अदत्तं ॥४२॥ १२७७. तुण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो सद्दे अंतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥४३॥ १२७८. मोसस्से पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले ये दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो सद्दे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥४४॥ १२७९. सद्दाणुरतस्स नरस्स ऍवं कत्तो सुहं होज कैंयाइ किंचि १ । ___ तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तए जस्स कए ण दुक्खं ॥४५॥ १२८०. एमेव सद्दम्मि गओ पओस उवेइ दुक्खोघपरंपराओ। पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥४६॥ १२८१. सद्दे विरत्तो मैंणुओ विसोगो एएण दुक्खोघपरंपरेण । न लिपपई भवमझेवि संतो जलेण वा पुंक्खरिणीपलासं ॥४७॥ १५ १. जीवे० ॥ ४० ॥ ला २। जीवे चरा० ॥४०॥ ला १। जीवे चराचरे० ॥ ४० ॥ पु०॥ २.५० ॥ ४१ ॥ ला २॥ ३. उप्पा० ॥ ४१॥ ला १। उप्पायणे ॥ ४१ ॥ पु०॥ ४. कहं सं २ विना ॥ ५. भइत्ते सं २॥ ६. परि० ॥४२॥ ला २ पु० । परिग्गहे यस शापा०॥ ७. सत्तो० ॥ ४२ ॥ ला १॥ ८. लोभातिले आइयई सं २॥ ९. अइत्तसं २॥ १०.१०॥ ४३ ॥ ला २॥ ११. माया०॥ ४३ ॥ ला१ । मायामुसं० ॥४३॥ पु० ॥ १२. स्स० पओ० एवं अ० सद्दे अ० ॥ ४४ ॥ ला १॥ १३. पुर० सद्दे अ० ॥४४॥ ला २ पु० ॥ १४. वि सं १ सं २॥ १५. समाइयं सं २॥ १६. अइत्तो सं २॥ १७. स्स० ॥४५॥ ला २॥ १८. तेवं सं २॥ १९. कत्तो० ॥ ४५ ॥ ला १ पु० ॥ २०. कया वि सं१॥ २१. °त्तई पा० ने० शा०॥ २२. उ०॥४६॥ ला २। उवेइ० ॥ ४६ ॥ ला १ पु०॥ २३, २६. दुक्खोहप सं १विना ॥ २४. मणु०॥४७॥ ला २॥ २५. ण ॥४७॥'ला १ पु०॥ २७. लिप्पए शा०॥ २८. ज्झे वसंतो सं १॥२९. पोक्ख°शा० । पुक्खरणी सं॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001026
Book TitleDasveyaliya Uttarjzhayanaim Avassay suttam
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri, Pratyekbuddha, Ganadhar
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages759
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_aavashyak, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy