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पंचवीसइमं जन्नइज्जं अज्झयणं
२२७ ९९१. उवलेवो होइ भोगेसु, अभोगी नोवलिप्पई।
भोगी भमइ संसारे, अभोगी विप्पमुच्चई ॥ ३९॥ ९९२. उल्लो सुको य दो छूढा गोलया मट्टियामया ।
दो वि आवडिया कुड्डे जो उल्लो सोऽत्थ लग्गई ॥ ४० ॥ ९९३. एवं लग्गति दुम्मेहा जे नरा कामलालसा ।
विरेत्ता उ न लग्गति जहाँ से सुँक्कगोलए ॥४१॥' ९९४. एवं से" विजयघोसे जयघोसस्स अंतिए ।
अणगारस्स निक्खते" धम्मं सोची अणुत्तरं ॥४२॥ ९९५. खवेत्ता पुव्वकम्माइं संजमेण तवेण य ।
जयघोस-विजयघोसा सिद्धि पत्ता अणुत्तरं ॥४३॥ ति बेमि॥ १०
॥ जैन्नई
समत्तं ॥२५॥
१. °प्पइ सं १॥ २. च्चइ सं १॥ ३. सुक्खो शा० ॥ ४. अल्लो सं १॥ ५. गइ सं १ ला १॥ ६. विरत्तकामा न सं १॥ ७. हा सुक्को उ गो पु०॥ ८. सुक्खगो° शा०॥ ९. लते सं२॥ १०.सो विजयघोसो ला २ पु०॥ ११. निक्खंतो संविना॥ १२. सोचाण केवलं॥४२॥ सं १ पाटीपा०॥ १३. जेणिज २५॥ सं १॥ १४.जं २५॥ ला १ ला २ पु० ॥
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