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________________ १० दसमं दुमपत्तयं अज्झयणं २९१. दुमपत्तए पंडेयए जहा निवडइ रोइगणाण अंचए । एवं मणुयाण जीवियं समयं गोयम ! मा पमायए ॥ १ ॥ २९२. कुसग्गे जह ओर्सेबिंदुए थोवं चिट्ठइ लंबमाणए । एवं मणुयाण जीवियं सँमयं गोयम ! मा पमायएँ ॥ २॥ २९३. इइ ईत्तिरियम्मि आंउए जीवियए बहुपच्चवायए । विहुणाहि रयं पुंरेकडं समयं गोयम ! मा पमाय ॥ ३ ॥ २९४. दुल्लभे खलु माणुसे भवे चिरकालेण वि सव्वपाणिणं । गाढा य विवग कम्मुणो समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ४ ॥ २९५. पुंढवीकायमइगओ उक्कोसं जीवो उँ संवसे । कॉलं संखाईयं समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ५ ॥ २९६. आउक्कार्यैमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखातीयं समयं गोयम ! मा पमायए । ६ ॥ २९७. तेर्उक्कायमइगओ” उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखातीयं समयं गोयम ! मा पमायए ॥७॥ २९८. वाउक्कार्यंमइगओ” उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखाईयं समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ८ ॥ १. " पंडुयए त्ति आर्षत्वात् पाण्डुरकम्” इति पाटी० टी० ॥ २. रायग° ६० शापा० ॥ ३. “ अत्यये - अतिक्रमे ” इति पाटी० नेटी० ॥ ४. तोसबिंदुते ह० शापा० ॥ ५. जीविए पाटीप्र० ॥ ६. अत आरभ्य षट्त्रिंशत्तमगाथापर्यन्तानां गाथानां 'समयं गोयम ! मा पमायए' इत्येतच्चतुर्थचरणस्थाने ला १ ला २ पु० प्रतिषु 'सम० ' अथवा ' समयं ० ' इत्येतादृक् संक्षिप्तः पाठ एव वर्तते ॥ ७. °ए॥ २॥ एवं मणुयाण जीविए इत्तिरिए बहुप पाटीपा० ॥ ८. इतर सं १ सं २ ला १ ह० विना, मुद्रितचूर्णौ च ॥ ९. आउयए ह० ॥ १०. पुराकडं पा० ॥ ११. दुलहे पा० ने० | दुल्लहे शा० ॥ १२. विपाकाः इत्यर्थः ॥ १३. पुढविक्काय सं२ ला १ ला २ पु० शापा० ॥ १४. तुचू० । य पा० ॥ १५. काले सं १ ॥ १६. य० सिलोगो ॥ ६ ॥ सं २ | य० ॥ ६ ॥ ला २ पु० ॥ १७. उक्को० ॥ ६ ॥ ला १ ॥ १८. तेउकायमुवगओ सं १ । तेउकाइ ० सिलोगो ॥ ७ ॥ सं २ | तेउक्काय० ॥ ७ ॥ ला २ पु० य० ॥ ८ ॥ ला २ पु० ॥ 'ओ० ॥ ८ ॥ ला १॥ " ॥ १९. भो० ॥ ७ ॥ ला १ ॥ २०. २१. Jain Education International For Private & Personal Use Only १० १५ www.jainelibrary.org
SR No.001026
Book TitleDasveyaliya Uttarjzhayanaim Avassay suttam
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri, Pratyekbuddha, Ganadhar
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1977
Total Pages759
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_aavashyak, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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