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आत्म वल्लभ संस्कृति मन्दिर
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नव-निर्मित जिन मन्दिर चतुर्मुखी है। इसमें भगवान् वासुपूज्य स्वामी मूलनायक हैं तथा भगवान् पार्श्वनाथ, भगवान् आदिनाथ एवं भगवान् मुनिसुव्रत स्वामीजी भी सुशोभित हो रहे हैं। भगवान् की प्रतिमाएं अति मनमोहक हैं। स्मारक भवन के रंगमंडप का व्यास 64 फुट है, जिसके मध्य में परम पूज्य जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी महाराज की एक भव्य 45" प्रमाण बैठी हुई मुद्रा में, मुंह बोलती प्रतिमा विराजमान की गई है। कला की दृष्टि से यह मूर्ति बेमिसाल है, जिसमें मूर्तिकार ने मानो जान डाल दी हो। भवन की ऊंचाई गुरुदेव की आयु अनुरूप 84 फुट रखी गई है। आज भी आठवीं से ग्यारहवीं शताब्दी ईस्वी काल की प्राचीन शिल्पकला इस स्मारक के माध्यम से पुनः जीवित हो उठी है। समस्त विश्व में पत्थर से निर्मित इस प्रकार का कलायुक्त भवन सम्भवतः दूसरा नहीं है। यह सुन्दर भवन, भारत की राजधानी एवं पर्यटकों के लिए आकर्षक नगरी दिल्ली की शोभा बढ़ा रहा है। निकट भविष्य में अवश्य ही यह वास्तुकला के निर्माण में अभिरूचि रखने वालों एवं दर्शकों तथा गवेषकों के लिए महत्वपूर्ण केन्द्र बन जाएगा।
पुण्य प्रासाद का प्रतिष्ठा महोत्सव बसन्तपंचमी दि. 10 फरवरी 1989 के शुभ दिन आचार्य विजय इन्द्रदिन्न सूरिजी महाराज की पावन निश्रा में हर्षोल्लास से आन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सम्पन्न हुआ है। 25 हजार से भी अधिक उपस्थिति थी तथा अस्सी जैन साधु एवं साध्वीजी महाराज ने सान्निध्य प्रदान कर इस महोत्सव की गरिमा बढ़ाई। __ पत्थर द्वारा निर्मित यह अनूठा और भव्य निर्माण, विशेषतः इसका द्वितलीय गुम्मट तथा तलागार की विशाल छत, विश्वभर में कई दृष्टि से अद्वितीय है। आधुनिक वास्तुकार तथा अभियन्ता भी इसकी परिकल्पना एवं निर्माण कला को देख चकित रह जाते हैं। इस कलापूर्ण निर्माण का श्रेय सोमपुरा श्री अमृतलाल तथा चन्दुलाल त्रिवेदी शिल्पिद्वय के अभियंत्रण कौशल एवं श्री विनोदलाल एन. दलाल के नेतृत्व में काम करने वाली मंडली को देना ही यथार्थ होगा। स्मारक परिसर का नक्शा ऐसी युक्ति से बनाया गया है कि आगन्तुकों को बाह्य द्वार से प्रवेश करते ही मनोहारी भवन दृष्टिगोचर होता है तथा गुरुदेव विजय वल्लभ सूरिजी महाराज की प्रतिमा एवं भगवान पार्श्वनाथ जी की मूर्ति के एक साथ ही दर्शन हो जाते हैं। स्मृति मन्दिर की प्रतिभा अनेकविध उत्कृष्ट है। दर्शकों के लिए यह स्थान एक नयनाभिराम दृष्य प्रस्तुत करता है, भक्तजनों के लिए यह पूजा स्थल है, ज्ञानपिपासुओं के लिए यह अध्ययन केन्द्र है, शांतिप्रिय लोगों के लिए अधिवांछित सांत्वना एवं उपशम प्रदान करता है तथा समाजसेवियों के लिए यह निरन्तर प्रेरणास्रोत है।
विजय वल्लभ स्मारक, अन्तर्रराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त करने वाला एक सजीव एवं ज्वलंत केन्द्र बन गया है। यह स्मारक सदैव युगवीर आचार्य विजय वल्लभ सूरिजी महाराज के उपकारों की याद दिलाता रहेगा एवं भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित स्वर्णिम सिद्धान्त – 'जियो एवं जीने दो' के प्रचार और प्रसार का विश्वकल्याण हेतु एक सक्रिय माध्यम तथा केन्द्र बनेगा एवं जैन समाज का यह गौरव चिहन सिद्ध होगा।
कान्तिलाल कोरा राजकुमार जैन मानद मन्त्रीद्वय -
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