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________________ एक अनुशीलन पुत्रों का देश था। डा. मोतीचन्द५० कंबोज को पामीर प्रदेश मानते हैं और द्वारका को बदरवंशा के उत्तर में स्थित दरवाजनगर कहते हैं। रायस डेविड्स५८ ने कंबोज को द्वारका की राजधानी लिवा है। उाध्याय भरतसिंह१५९ ने लिखा है द्वारका सौराष्ट्र का एक नगर था। संप्रति द्वारका कस्बे से आगे २० मील की दूरी पर कच्छ की खाड़ी में एक छोटा सा टापू है। वहाँ एक दूसरी द्वारका है जो बेट द्वारका कही जाती है। बोंबे गेजेटियर १६० में कितने ही विद्वानों ने द्वारिका की अवस्थिति पंजाब में मानने की संभावना की है। डा. अनन्त सदाशिव अल्तेकर१६१ ने लिखा है-प्राचीन द्वारका समुद्र में डूब गई, अतः द्वारका की अवस्थिति का निर्णय करना कठिन है। प्रस्तुत विवेचन से यह स्पष्ट है कि द्वारका एक विशिष्ट नगरी थी। छठे अध्ययन का संबंध राजगृह नगर से है। इस अध्ययन में कर्मवाद जैसे गुरु गंभीर विषय को रूपक के द्वारा स्पष्ट किया है। सातवें अध्ययन में धन्ना सार्यवाह की चार पुत्रवधुओं का उदाहरण है। प्रो. टाइमन ने अपनी जर्मन पुस्तक-"बुद्ध और महावीर" में बाइबिल की मैथ्यू और लूक की कथा के साथ प्रस्तुत कथा की तुलना की है। वहाँ पर शालि के दानों के स्थान पर 'टेलेण्ट' शब्द आया है। टेलेण्ट उस युग में प्रचलित एक सिक्का था। एक व्यक्ति विदेश जाते समय अपने दो पुत्रों को दस-दस टेलेण्ट दे गया था। एक ने व्यापार द्वारा उसकी अत्यधिक वृद्धि की। दूसरे ने उन्हें जमीन में रख लिए। लौटने पर पिता प्रथम पुत्र पर बहुत प्रसन्न हुआ। आठवें अध्ययन में तीर्थंकर मल्ली भगवती का वर्णन है। मल्ली भगवती का जन्म मिथिला में हुआ था। मिथिला उस युग की एक सुप्रसिद्ध नगरी थी। जातक १६२ की दृष्टि से मिथिला राज्य का विस्तार ३०० योजन था। उसमें १६ सहस्र गाँव थे। सुरुचि जातक से भी मिथिला के विस्तार का पता चलता है। वाराणसी के राजा ने यह निश्चय किया था कि वह अपनी पुत्री का विवाह उसी राजकुमार के साथ करेगा जो एकपत्नीव्रत का पालन करेगा। मिथिला के राजकुमार सुरुचि के साथ विवाह की चर्चा चल रही थी। एकपत्नीव्रत की बात को श्रवण कर वहाँ के मंत्रियों ने कहा-मिथिला का विस्तार ७ योजन है और समुच्चय राष्ट्र का विस्तार ३०० योजन है। हमारा राज्य बड़ा है, अतः राजा के अन्तःपुर में १६०० रानियाँ होनी१६३ चाहिए। रामायण में मिथिला को जनकपुरी कहा है। विविध तीर्थ कल्प१६४ में इस देश को तिरहुत्ति कहा है। और मिथिला को जगती१६५ कहा है। महाभारत वनपर्व (२५४), महावस्तु (पृ. १७२), दिव्यावदान (पृ. ४२४) और रामायण आदिकाण्ड के अनुसार तीरभुक्ति नाम है। यह नेपाल की सीमा पर स्थित है, वर्तमान में यह जनकपुर के नाम से प्रसिद्ध है, इसके उत्तर में मुज़फ्फरपुर और दरभंगा के जिले हैं, (ल हा, ज्यायोफी ऑफ अर्ली बुद्धिज्म पृ. ३१, कनिंघम ऐश्वेंट ज्याग्रोफी ऑफ इंडिया, एस. एस. मजुमदार संस्करण पृ. ७१) इसके पास ही महाराजा जनक के भ्राता १५७. Geographical & Economic Studies in Mahabharata. पृ० ३२.४०॥ १५८. Buddhist India P. 28॥ १५९. बौद्धकालीन भारतीय भूगोल पृ० ४८७ ॥ १६०. बोंबे गेजेटियर भा. १. पार्ट. १. पृ० ११ का टिप्पण॥ १६१. इण्डियन ण्टिक्वेरी, सन् १९२५, सप्लिमेंट पृ. २५ ॥ १६२. जातक (सं ४०६) भाग ४, पृ० २७ ।। १६३. जातक (सं ४८८) भाग ४. पृ० ४, ५२१-२२॥ १६४. संपइकाले तिरहुत्ति देसो ति भण्णई-विविध तीर्थकल्प, पृ० ३२ ।। १६५. वही. पृ. ३२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001021
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Dharmachandvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1990
Total Pages737
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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