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________________ ८८ एक अनुशीलन (५७) नगरमाणं - नगर का प्रमाण जानने की कला (५८) वत्थमाणं - वस्तु का प्रमाण जानने की कला (५९) खंधावारनिवेस — सेना का पड़ाव आदि डालने का परिज्ञान (६०) वत्थुनिवेस – प्रत्येक वस्तु के स्थापन करने की कला (६१) नगरनिवेस - नगर निर्माण का ज्ञान (६२) ईसत्थं - ईषत् को महत् करने की कला (६३) छरुपवायं - तलवार आदि की मूठ बनाने की कला (६४) आससिक्खं - अश्वशिक्षा (६५) हत्थिसिक्खं - इस्ति शिक्षा (६६) घणुत्रेयं = धनुर्वेद (६७) हिरण्णवागं, सुवण्णगपागं, मणिवागं, धातुपागं हिरण्यपाक, सुवर्णपाक, मणिपाक, धातुपाक बनाने की कला (६८) बाहुजुद्धं, दंडजुद्धं, मुट्ठिजुद्धं, अट्ठिजुद्धं, जुद्धं, निजु जुद्धाइजुद्धं - बाहुयुद्ध, दण्डयुद्ध मुष्टियुद्ध, यष्टियुद्ध, युद्ध, नियुद्ध, युद्धातियुद्ध करने की कला कला (६९) सुत्ताखेडं, नालियाखेडं, वट्टखेडं, धम्मखेडं, चम्मखेडं - सूत बनाने की कला, नली बनाने की, गेंद खेलने की, वस्तु के स्वभाव जानने की, चमड़ा बनाने आदि (७०) पत्रच्छेजं- कडगच्छेजं- पत्रछेदन, वृक्षांग विशेष छेदने की कला (७१) सजीवं, निजीवं - सजीवन, निर्जीवन - संजीवनी विद्या ( ७२ ) स उणस्यं - पक्षी के शब्द से शुभाशुभ जानने की कला कल्पसूत्र की टीकाओं." में बहत्तर कलाओं का वर्णन प्राप्त होता है। वे ज्ञातासूत्र की बहत्तर कलाओं से प्रायः भिन्न हैं । वे इस प्रकार हैं- (१) लेखन (२) गणित (३) गीत (४) नृत्य (५) वाद्य (६) पठन ( ७ ) शिक्षा (८) ज्योतिष ( ९ ) छन्द (१०) अलंकार (११) व्याकरण (१२) निरुक्ति (१३) काव्य (१४) कात्यायन (१५) निघण्टु (१६) गजारोहण (१७) अश्वारोहण (१८) आरोहणशिक्षा (१९) शस्त्राभ्यास (२०) रस (२१) यंत्र (२२) मंत्र (२३) विष (२४) खन्ध (२५) गन्धवाद (२६) प्राकृत (२७) संस्कृत (२८) पैशाचिका (२९) अपभ्रंश (३०) स्मृति (३१) पुराण (३२) विधि (३३) सिद्धान्त (३४) तर्क (३५) वैद्यक (३६) वेद (३७) आगम (३८) संहिता ( ३९ ) इतिहास (४०) सामुद्रिक (४१) विज्ञान (४२) आचार्य विद्या (४३) रसायन (४४) कपट (४५) विद्यानुवाद दर्शन (४६) संस्कार (४७) धूर्त संकलक (४८) मणिकर्म (४९) तरुचिकित्सा (५०) खेचरी कला (५१) अमरी कला (५२) इन्द्रजाल (५३) पातालसिद्धि (५४) यन्त्रक (५५) रसवती (५६) सर्वकरणी (५७) प्रासाद लक्षण (५८) पण (५९) चित्रोपल (६०) लेप (६१) चर्मकर्म (६२) पत्रछेद (६३) नखछेद (६४) पत्र परीक्षा (६५) वशीकरण (६६) कष्टघटन (६७) देशभाषा (६८) गारुड (६९) योगांग (७०) धातु कर्म (७१) केवल विधि ( ७२ ) शकुनिरुत आचार्य वात्स्यायन ने "कामसूत्र " में "" चौंसठ कलाओं का वर्णन किया है। उन चौंसठ कलाओं के साथ ज्ञाता सूत्र आई हुई बहत्तर कलाओं की हम सहज तुलना कर सकते हैं। वे बहत्तर कलाएँ चौंसठ कलाओं के अन्तर्गत आ सकती हैं। देखिए १०० कल्पसूत्र सुबोधिकाटीका ॥ १०१. कामसूत्र विद्यासमुद्देश प्रकरण ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001021
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Dharmachandvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1990
Total Pages737
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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