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________________ ८२ एक अनुशीलन (३) वृषभ, (४) ऋषिगिरि और (५) चैत्यगिरि६५। फाह्यान ने भी इस सत्य-तथ्य को स्वीकार किया।६६ युवानबाङ्ग का भी यही अभिमत है।६७ गौतम बुद्ध के समय राजगृह की परिधि तीन मील के लगभग थी। राजनीति के केन्द्र के साथ ही वह धार्मिक केन्द्र भी था। महाभारत के राजगृह की पहाड़ियों को सिद्धों, यतियों और मुनियों का शरण भी बताया है।६९ वहाँ पर अनेक सन्तगण ध्यान की साधना करते थे। जैन और बौद्ध साहित्य में उनके उल्लेख हैं। भगवती आदि में गर्म पानी के कुण्डों का वर्णन है। युवान्च्वाङ् ने भी इस बात को स्वीकार किया है। उस पानी से अनेक चर्मरोगी पूर्ण स्वस्थ हो जाते थे, आज भी वे कुण्ड हैं। स्वप्न : एक चिन्तन : प्रस्तुत अध्ययन में महारानी धारिणी के स्वप्न का वर्णन है। वह स्वप्न में अपने मुख में हाथी को प्रवेश करते हुए देखती है। जहाँ कहीं भी आगम-साहित्य में कोई भी विशिष्ट पुरुष गर्भ में आता है, उस समय उसकी माता स्वप्न देखती है। स्वप्न न जागते हुए आते हैं, न प्रगाढ निद्रा में आते हैं। किन्तु जब अर्धनिद्रित अवस्था में मानव होता है उस समय उसे स्वप्न आते हैं।७१ अष्टांगहृदय में लिखा है७२ -जब इन्द्रियाँ अपने विषय से निवृत्त होकर प्रशान्त हो जाती हैं और मन इन्द्रियों के विषय में लगा रहता है तब वह स्वप्न देखता है। सिग्मण्ड फ्रायड ने स्वप्न का अर्थ दमित वासनाओं की अभिव्यक्ति कहा है। उन्होंने स्वप्न के संक्षेपण, विस्तारीकरण, भावान्तरकरण और नाटकीकरण, ये चार प्रकार किये हैं! (१) बहुत विस्तार की घटना को स्वप्न में संक्षिप्त रूप में देखना (२) स्वप्न में घटना को विस्तार से देखना (३) घटना का रूपान्तर हो जाना, किन्तु मूल संस्कार वही है, अभिभावक द्वाग भयभीत करने पर स्वप्न में किसी कर व्यक्ति आदि को देखकर भयभीत होना (४) पूरी घटनाएँ नाटक के रूप में स्वप्न में आना। चार्ल्स युग ३ स्वप्न को केवल अनुभव की प्रतिक्रिया नहीं मानते हैं। वे स्वप्न को मानव के व्यक्तित्व का विकास और भावी जीवन का द्योतक मानते हैं। फ्रायड और युग के स्वप्न संबंधी विचारों में मुख्य रूप से अन्तर यह है कि फ्रायड यह मानता है कि अधिकांश स्वप्न मानव की कामवासना से सम्बन्धित होते हैं जब कि युग का मन्तव्य है कि स्वप्नों का कारण मानव के केवल वैयक्तिक अनुभव अथवा उसकी स्वार्थमयी इच्छाओं का दमन मात्र ही नहीं होता अपितु उसके गंभीरतम मन की आध्यापिक अनुभूतियाँ भी होती हैं। स्वप्न में केवल दमित भावनाओं की बात पूर्ण संगत नहीं है, वह केवल संयोग मात्र ही नहीं है, किन्तु उसमें अभूतपूर्व सत्यता भी रही हुई होती है। ___ आचार्य जिनसेन ने" स्वस्थ अवस्थावाले और अस्वस्थ अवस्थावाले, ये दो स्वप्न के प्रकार माने हैं। जब शरीर पूर्ण स्वस्थ होता है तो मन पूर्ण शांत रहता है, उस समय जो स्वप्न दिखते हैं वह स्वस्थ अवस्थावाला स्वप्न है। ऐसे स्वप्न बहुत ही कम आते है और प्रायः सत्य होते हैं। मन ६५. महाभारत सभापर्व अध्याय ५४ पंक्ति १२०॥ ६६. फाहियान, गाइल्स लन्दन पृ. ४९ ॥ ६७. ऑन युवान् च्वाङ्ग, वाटर्स २, १५३॥ ६८. ऑन युवान् च्वाङ्ग, वाटर्स २, १५३॥ ६९. एतेषु पर्वतेन्द्रेषु सर्वसिद्धसमालयाः। यतीनामाश्रमश्चैव मुनीनां च महात्मनाम् वृषभस्य तमालस्य महावीर्यस्य वै तथा। गंधर्वरक्षसां चैव नागानां च तथाऽऽलयाः॥-महाभारत सभापर्व अ. २१, १२-१४ ।। ७०. ऑन युवान् च्वाङ्ग वार्टस, २, १५४॥ ७१. भगवती सूत्र १६-६ ॥ ७२. अष्टांगहृदय निदानस्थान ९॥ ७३. हिन्दी विश्वकोश खण्ड-१२ पृ. २६४॥ ७४. ते च स्वप्ना द्विधा भ्रातः स्वस्थावस्थात्मगोचराः । समैस्तु धातुभिः स्वस्खविषमैरितरैर्मताः ॥ तथ्याः स्युः स्वस्थसंदृष्टा मिथ्या स्वप्नो विपर्थयात् । जगत्प्रतीतमेतद्धि विद्धि स्वप्नविमर्शनम् ॥ महापुराण ४१-५९/६०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001021
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Dharmachandvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1990
Total Pages737
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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