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________________ एक अनुशीलन का आत्मागम नहीं क्योंकि उन्होंने तीर्थंकरों से प्राप्त किया। गणधरों के प्रशिष्य और उनकी परम्परा में होने वाले अन्य शिष्य-प्रशिष्यों के लिए सूत्र और अर्थ-दोनों आगम परम्परागम हैं। श्रमण भगवान महावीर के पावन प्रवचनों का गणधरों ने सूत्र रूप में जो संकलन और आकलन किया वह संकलन "अंगसाहित्य" के नाम से विश्रुत है। अंग-साहित्य के बारह भेद हैं जो इस प्रकार हैं-(१) आचार (२) सूत्रकृत् (३) स्थान (४) समाय (५) भगवती (६) ज्ञाताधर्ममथ! (७) उसकदशा (८) अन्तकृद्दशा (९) अनुत्तरौपपातिक (१०) प्रश्नव्याकरण (११) विधाक और (१२) दृष्टिवाद। झातासूत्र : परिचय अंग साहित्य में ज्ञाताधर्मकथा का छठा स्थान है। इसके दो श्रुतस्कंध है। प्रथम श्रुतस्कंध में ज्ञात यानी उदाहरण और द्वितीय श्रुतस्कंध में धर्मकथाएँ हैं। इसलिए इस आगम का 'णायाधम्मकहाओ नाम है। आचार्य अभयदेव ने अपनी टीका में इसी अर्थ को स्पष्ट किया है। तत्त्वार्थभाष्य में 'ज्ञातधर्मकथा' नाम आया है। भाष्यकार ने लिखा है-उदाहरणों के द्वारा जिसमें धर्म का कथन किय, है। जयधवला में नाहधम्मकहा—'नाथधर्म कथा' नाम मिलता है। नाथ का अर्थ स्वामी है नाथधर्मकथा का तात्यर्य है नाथ-तीर्थकर द्वारा प्रतिपादित धर्मकथा । संस्कृत साहित्य में प्रस्तुत आगम का नाम 'ज्ञातृधर्भकथा' उपलब्ध होता है। आचार्य मलयगिरि ४ व आचार्य अभयदेव ने उदाहरणप्रधान धर्मकथा को ज्ञाताधर्मकथा कहा है। उनकी दृष्टि से प्रथम अध्ययन में ज्ञात है और दूसरे अध्ययन में धर्मकथा है। आचार्य हेमचन्द्र ने अपने कोश में ज्ञातप्रधान धर्मकथाएँ ऐसा अर्थ किया है। पं. बेचरदास जी दोशी६, डा. जगदीशचन्द्र जैन, डा. नेमिचन्द्र शास्त्री का अभिमत है कि ज्ञातपुत्र महावीर की धर्मकथाओं का प्ररूपण होने से प्रस्तुत अंग को उक्त नाम से अभिहित किया गया है। · श्वेतांबर आगम साहित्य के अनुसार भगवान् महावीर के वंश का नाम 'ज्ञात" था। कल्पसूत्र, आवारांग२९, सूत्रकृतांग२१, भगवती२२, उत्तराध्ययन२३ और दशवैकालिक२४ में उनके नाम के रूप में 'ज्ञात' शब्द का प्रयोग हुआ है। विनयपिटक, मज्झिमनिकाय२६, - १२. ज्ञाता दृष्टान्ताः तानुपादाय धर्मो यत्र कथ्यते, ज्ञातधर्मकथाः। -तत्त्वार्थभाष्य ॥ १३. तत्त्वार्थ वार्तिक ११२० पृ. ७२॥ १४. ज्ञातानि उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथाः अथवा ज्ञातानि-ज्ञाताध्ययनानि प्रथमश्रुतस्कंधे, धर्मकथा द्वितीयश्रुतस्कंधे यासु ग्रंथपद्धतिषु (ताः) ज्ञाताधर्मकथाः। नंदीवत्ति, पत्र २३०-२३१॥ १५. ज्ञातानि उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा. संज्ञात्वाद् अथवा–प्रथमश्रुतस्कंधो ज्ञाताभिधायकत्वात् ज्ञातानि, द्वितीयस्तु तथैव धर्मकथाः । समवायांग पत्र १०८॥ १६. भगवान् महावीरनी धर्मकथाओ, टिप्पण पृ. १८०॥ १७. प्राकृतसाहित्य का इतिहास.। १८. प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पृ. १७२॥ १९. कल्पसूत्र ११०॥ २०॥ (क) आचारांग श्रु. २, अ. १५, सू. १००३ (ख) आचारांग श्रु. १, अ. ८, उ. ८, सू. ४४८ ॥ २१॥ (क) सूत्र. उ. १, गा. २२. (ख) सूत्र. १।६।२ (ग) सूत्र. १।६।२४ (घ) सूत्र. २।६।१९ ॥ २२ भगवती १५।७९ ॥ २३. उत्तरा० ६।१७॥ २४. दशवै० अ० ५, उ० २, गा० ४९ तथा ६।२५ एवं ६।२१॥ २५. विनय पिटक महावग्ग पृ. २४२॥ २६. मज्झिमनिकाय हिन्दी उपाति-सुत्तन्त पृ. २२२ चूल-दुक्खक्खन्ध सुत्तन्त पृ. ५९, चूल--सोरोपम-सुत्तन्त पृ. १२४, महा सच्चक सुत्तन्त पृ. १४७. अभयराज कुमार सुत्तन्त पृ. २३४, देवदह सुत्तन्त ४४१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001021
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Dharmachandvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1990
Total Pages737
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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