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________________ सु०१५-१८] नेरइयपवेसणगपरूवणा ४२३ अहवा एगे रयणप्पभाए, दो सक्करप्पभाए होज्जा, १। जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, दो अहेसत्तमाए होज्जा, २-३-४-५-६। अहवा दो रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए होजा १। जाव अहवा दो रयणप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा, २-३-४-५-६=१२। अहवा एगे सक्करप्पभाए, दो वालुयप्पभाए होजा १। जाव अहवा एगे सकरप्पभाए, दो अहेसत्तमाए होजा, २-३-४- ५ ५=१७। अहवा दो सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए होजा १। जाव अहवा दो सक्करप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होजा, २-३-४-५= २२। एवं जहा सक्करप्पभाए वत्तव्वया भणिया तहा सबपुढवीणं भाणियव्वा, जाव अहवा दो तमाए, एगे अहेसत्तमाए होजा। ४-४, ३-३, २-२, १-१, ४२ । ____ अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए होज्जा १। १० अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे पंकप्पभाए होज्जा २। जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होजा, ३-४-५ । अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए होजा ६। अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होजा ७। एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होजा, ८-९। अहवा १५ एगे रयणप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होजा १० । जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होजा, ११-१२। अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा १३। अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होजा १४। अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा १५। अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए होज्जा १६ । अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा १७। जाव अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा, १८-१९। अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा २० । जाँव अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा, २१-२२। अहवा एगे सक्करप्पभाए, २५ एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होजा २३। अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे १. एवं द्विकसंयोगे ४२ भङ्गाः ॥ २. 'जाव' पदेन 'अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालयप्पभाए, एगे तमाए ८' इत्यष्टमो भङ्गो ज्ञेयः ॥ ३. 'जाव' पदेन 'अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे वालयप्पभाए, एगे तमाए १८' इत्यष्टादशो भङ्गो ज्ञेयः॥ ४. 'जाव' पदेन 'अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे तमपभाए २१' इत्येकविंशो भङ्गो ज्ञेयः॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001018
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1974
Total Pages548
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_bhagwati
File Size9 MB
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