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________________ सु० २८-२९, १–८] कालादेसेणं जीवाईसु सपदेसाइषत्तव्वयादि २४३ २. [१] नेरतिए णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसे, अपदेसे ? गोयमा ! सिय सपदेसे, सिय अपदेसे । [२] एवं जावं सिद्धे । ३. जीवा णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसा, अपदेसा १ गोयमा ! नियमासपदेसा । ४. [१] नेरइया णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसा, अपदेसा ? गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्ज सपदेसा, अहवा सपदेसा य अपदेसे य, अहवा सपदेसा य अपदेसा य । [२] एवं जीव थणियकुमारा । ५. [१] पुढविकाइया णं भंते! किं सपदेसा, अपदेसा ? गोयमा ! १० सपदेसा वि, अपदेसा वि । [२] एवं जीव वैणप्फतिकाइया । ६. सेसा जहा नेरइया तहा जाव सिद्धा । [सु. ७-१९. आहारगाइ-भवसिद्धियाइ-सण्णिआइ-सले साइ- सम्मद्दिद्विआइ-संजताइ सकसायाइ - णाणाइ- सजोगिआइ-सागारोवउत्ताइसवे गाइ- ससरीरिआइ-पत्त याईसु सपदेस - अपदेसवत्त व्यया ] ७. [१] आहारगाणं जीवेगेंदियर्वज्जो तियभंगो । [२] अणाहारगाणं जीवेगिंदियवज्जा छन्मंगा एवं भाणियव्वा - सपदेसा वा, अपएसा वा, अहवा सपदेसे य अपदे से य, अहवा सपदेसे य अपदेसा य, अहवा सपदेसा य अपदेसे य, अहवा सपदेसा य अपदेसा य | सिद्धेहिं तियभंगो । ८. [१] भवसिद्धीया अभवसिद्धीया जहा ओहिया । [२] नोभवसिद्धियनोअभवसिद्धिया जीव - सिद्धेहिं तियभंगो । १. ' जाव' पदेन भवनपत्यादि - वैमानिकदेवपर्यन्ता दण्डका वाच्याः ॥ २. 'जाव ' पदेन असुरकुमारादयो भवनवासिनो ग्राह्याः ॥ ३. 'जाव 'पदेन अप्कायादिका ग्राह्याः ॥ ४. वणस्सइका ला १॥ ५. 'जाव 'पदेन वैमानिकपर्यन्ता दण्डका ग्राह्याः ॥ ६. ' वज्जा तियभंगा ला १ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only १५ २० www.jainelibrary.org
SR No.001018
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1974
Total Pages548
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_bhagwati
File Size9 MB
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