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वियाहपण्णत्तिसुतं
[स०३ उ०६ [छटो उद्देसओ 'नगर' अहवा · अर्णगारवीरियलद्धी'] [सु. १-५. भाषियप्पणो मिच्छद्दिहिस्सऽणगारस्स वीरियाइलद्धिप्प
भावओ नगरंतररूषजाणणा-पासणापरूषणा]
१. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा मायी मिच्छद्दिट्ठी वीरियलद्धीए ५ वेउब्वियलद्धीए विभंगनाणलद्धीए वाणारसिं नगरि समोहए, समोहण्णित्ता रायगिहे नगरे रूवाइं जाणति पासति ? हंता, जाणइ पासइ।।
२. [१] से भंते ! किं तहाभावं जाणइ पासइ ? अन्नहाभावं जाणइ पासइ १ गोयमा ! णो तहाभावं जाणइ पासइ, अण्णहाभावं जाणइ पासइ ।
[२] से केणद्वेणं भंते ! एवं धूचइ 'नो तहाभावं जाणइ पासइ, अन्न१० हाभावं जाणइ पासइ ?'। गोयमा ! तस्स णं एवं भवति–एवं खलु अहं
रायगिहे नगरे समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नगरीए रूवाइं जाणामि पासामि, से से दंसंणे विवचासे भवति, से तेणटेणं जाव पासति ।
३. अणगारे णं भंते! भावियप्पा मायी मिच्छद्दिट्ठी जाव रायगिहे नगरे समोहए, समोहण्णित्ता वाणारसीए नगरीए रूवाइं जाणइ पासइ ? हंता, जाणइ १५ पासइ। तं चेव जाव तस्स णं एवं होइ-एवं खलु अहं वाणारसीए नगरीए
समोहए, २ रायगिहे नगरे रूवाइं जाणामि पासामि, से से दसणे विवच्चासे भवति, से तेणटेणं जाव अन्नहाभाव जाणइ पासइ ।
४. अणगारेणं भंते ! भावियप्पा मायी मिच्छद्दिट्ठी वीरियलद्धीए वेउवियलद्धीए विभंगंणाणलद्धीए वाणारसिं नगरि रायगिहं च नगरं अंतरा य एगं महं जणवयवग्गं समोहए, २ वाणारसिं नगरि रायगिहं च नगरं तं च अंतरा एगं महं जणवयवग्गं जाणति पासति ? हंता, जाणति पासति ।
५. [१] से भंते ! किं तहाभावं जाणइ पासइ ? अन्नहाभावं जाणइ पासइ ? गोयमा ! णो तहाभीवं जाणति पासइ, अन्नहाभावं जाणइ पासइ ।
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१. उद्देशकस्य आदी 'नगर' शब्दस्य निर्देशापेक्षया ॥ २. इदं च नाम उद्देशकवर्णितविषयापेक्षया ॥ ३. हणित्ता मु० ॥ ४. बुच्चइ ला० ॥ ५. दंसणे विवरीए विवञ्चासे अवृपा० । दसणविव' ला० ला १॥ ६. हणित्ता ला० मु० ॥ ७. तसन्नं भवति-एवं ला० ॥ ८. °सणविव' ला० ला १॥ ९. विभंगलद्धीए ला १॥ १०. गरं तं च अंत लों० ॥ ११. वयग्गं ला०, आदर्शेऽस्मिन् सर्वत्र अयमेव पाठः ॥ १२. भावं, अन्नहा लों० ॥
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