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________________ [विशेष सूत्र के लिए कहीं दो अंक, कहीं तीन अंक और कहीं चार अंक भी दिये गये हैं । उनमें जहां दो अंक दिये गये हैं उनमें प्रथम अंक खण्ड और द्वितीय अंक सूत्र का सूचक है । जैसे— ३, ४१ (अभिक्खणणोवजोगजुत्तदा ) में ३ का अंक तीसरे 'बन्धस्वामित्वविचय' खण्ड का और ४१ का अंक तदन्तर्गत ४१ वें सूत्र का सूचक है। तीन अंकों में प्रथम अंक खण्ड का, द्वितीय अंक तदन्तर्गत अनुयोगद्वार का और तृतीय अंक सूत्र का सूचक है । जहाँ चार अंक दिये गये हैं, वहाँ प्रथम अंक खण्ड का, द्वितीय अंक अनुयोगद्वार का, तृतीय अंक तदन्तर्गत अवान्तर अनुयोगद्वार का और चतुर्थ अक सूत्र का सूचक है । जैसे ४, २, ६, ८ में चौथे वेदना खण्ड के अन्तर्गत दूसरे 'वेदना' अनुयोगद्वार का, तीसरा तदन्तर्गत छठे 'वेदनकाल विधान' नामक अवान्तर अनुयोगद्वार का और चौथा तद्गत वें सूत्र का सूचक है । जैसे- 'अकम्मभूमिय' में । कहीं-कहीं चार अंक इस रूप में दिये गये हैं— १, ६-१, २३ (अनंताणुबंधी ) । इनमें प्रथम १ अंक पहले 'जीवस्थान' खण्ड का, ६-१ इस खण्ड से सम्बद्ध ६ चूलिकाओं में प्रथम 'प्रकृतिसमुत्कीर्तन' चूलिका का और २३ अंक तदन्तर्गत तेईसवें सूत्र का बोधक है । ] सूत्रांक पुस्तक शब्द अइवुट्ठि अकसाई कम्मभूमिय अकाइय अक्ख अक्खर श्रक्खरकव्व परिशिष्ट-३ षट्खण्डागम मूलगत पारिभाषिक शब्दानुक्रमणिका अक्खरसमासावरणीय अक्खरसंजोग अक्खरावरणीय raat महा अगणिजीव Jain Education International ५, ५, ६३ व ७२ १,१,११ ४,२,६,८ ( अ ) १,१,३६ व ४६,२,१,३० ४,१,५२,५,३,१०; ५,४,१२; ५, ५, १०, ५, ६, ६ ५,५,४५ ५, ५,४८ ५,५,४५ ५,५,४८ ४,१,४२ ५, ५, १५ (गाथा) १३ १ ११ १,७ ६,१३, १४ १३ १३ १३ १३ ε १३ For Private & Personal Use Only पृष्ठ ३३२; ३४१ ३४८ 55 २६४; २७७,७३ २४८; ६, १२; २०१,५ २४७ २६१ २४७ २६१ १०१ ३२२-२३ www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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