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(५) ज्ञानादिगुणोत्पादन (गति-आगति चूलिका सूत्र २०३-४१, पु०६.१० ४८४-५०२)
सम्यक्त्व
संयम
शलाकापुरुष
किस गति में
आकर
अन्तकृत समस्त
गति से
मन:पर्यय
मति
सम्यग्मिध्यात्व सम्यक्त्व |
संयमासंयम । संयम | बलदेव | वासुदेव |चक्रवर्ती तीर्थकर
भरक
सप्तम पृथिवी
२०३-५
सम्यग्मिध्यात्व सम्यक्रव| संयमासंयम
२०६-८
छठी पृथिवी
तियंप होकर प्रतियंच मनुष्य [तियंच मनुष्य
पंचम पृथिवी
२०६-१२
मन:पर्यय
तियंच
चतुर्थ पृथिवी
२१३-१६
मनुष्य
मनःपर्यय
केवल
तृतीय, द्वितीय व प्रथम पृथिवी
(तियंच मनुष्य
। ।। ।।।। || ।। ।। ।। ।
२१७-२०
तीर्थकरत्व अन्तकृत्व
मनःपर्यय
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तियंच-मनुष्य
संयमासंयम
[नारक |तियंच
मनुष्य [देव
२२१-२५
मन:पयंय
संयमासंयम
भवनत्रिक देवदेवियां व सौ.इ० कल्प देवियाँ
२३०-३३
अन्तकृत्त्व
मनःपर्यय
२३४ व २२६-२६
संयम | वलदेवत्व वासुदेवत्व चक्रवतित्व तीर्थक रत्व अन्तकृत्य
मनःपर्यय
सौधर्म-ईशान से (तिर्यंच शतार सहसार
मनुष्य मानतादि नौवेयक ____ मनुष्य अनुदिश से
मनुष्य अपराजित तक
२३५-३७
२३५-४०
नियम से रहता है
| नियम से नियम से कदाचित्
रहता है रहता है रहता है नियम से | नियम से नियम से रहता है रहता है
। ।
सर्वार्थसिद्धि विमानवासी
मनुष्य
१४१.४३
| कदाचित् नियम से उत्पन्न करते है उत्पन्न
करते है
अन्तकृत्त्व नियम से होते हैं
७८.(म)/ बसण्डागम-परिशीलन
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