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अनिदिष्ट नाम ग्रन्थ
धवलाकार ने जहाँ ग्रन्थनाम-निर्देशपूर्वक कुछ ग्रन्थों की गाथाओं व श्लोकों आदि को अपनी इस टीका में उद्धृत किया है वहाँ उन्होंने ग्रन्थनामनिर्देश के बिना भी पचासों ग्रन्थों की गाथाओं और श्लोकों आदि को प्रसंगानुसार जहाँ-तहां धवला में उद्धत किया है। उनमें से जिनको कहीं ग्रन्थविशेषों में खोजा जा सका है उनका उल्लेख यहां किया जाता है
१. अनुयोगद्वार-धवलाकार ने जीवस्थान-द्रव्यप्रमाणानुगम के प्रसंग में सासादनसम्यगदृष्टि आदि के काल की अपेक्षा द्रव्यप्रमाण के प्ररूपक सूत्र (१,२,६) की व्याख्या में प्रसंगप्राप्त आवलि आदि कालभेदों के प्रमाण को प्रकट किया है। उसे पुष्ट करते हुए आगे धवला में 'उक्तं च' इस निर्देश के साथ चार गाथाओं को उद्धृत किया गया है ।' उनमें तीसरी गाथा इस प्रकार है
अड्ढस्स अणलसस्स य णिरुवहदस्स य जिणेहि जंतस्स ।
उस्सासो णिस्सासो एगो पाणो त्ति आहिदो एसो॥ कुछ थोड़े शब्दभेद के साथ इसी प्रकार की एक गाथा अनुयोगद्वार में भी उपलब्ध होती है । यथा
हट्ठस्स अणवगल्लस्स णिरुवकिट्ठस्स जंतुणो।
एगे ऊसास-णीसासे एस पाणु त्ति बुच्चई ॥ इस प्रकार इन दोनों गाथाओं में कुछ शब्दभेद के होने पर भी अभिप्राय प्रायः समान है। दोनों के शब्दविन्यास को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि वे एक-दूसरे पर आधारित रही हैं। उनमें से उक्त दोनों ग्रन्थों में चौथी गाथा इस प्रकार है
तिण्णि सहस्सा सत्त य सयाणि तेहरिं च उस्सासा । एगो होदि मुहुत्तो सर्वेसि चेव मणुयाणं ।।-धवला तिणि सहस्सा सत्त सयाई तेहरिं च ऊसासा । एस मुहुत्तो दिट्ठो सर्वहिं अणंतनाणोहिं ।'
१. धवला, पु० ३, पृ० ६६ २. अनुयो० गा० १०४, पृ० १७८-७९; यह गाथा इसी रूप में भगवती (पृ० ८२४) और
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र (१८, पृ० ८६) में भी इसी रूप में उपलब्ध होती है। ३. अनुयो० १०५-६, पृ० १७६; यह गाथा भी इसी रूप में भगवती (६,७,४, पृ० ८२५)
और जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र (१८, पृ० ८६) में उपलब्ध होती है ।
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