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धवला
क्रमांक
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अवतरणांश पक्खेवरासिगुणिदो पढमं पयडिपमाणं पढमिच्छसलागगुणा प्रक्षेपसंक्षेपेण
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फालिसलागब्भहियावाहिरसूईवग्गो बिदियादिवग्गणा पुण मिश्रधने अष्टगुणो मुह-तलसमास अद्धं मुह-भूमिविसेसम्हि दु मुह-भूमीण विसेसो मूलं मज्झेण गुणं रासिविसेसेणवहिद रूपेषु गुणमर्थेषु वर्गणं रूपोनमादिसंगुण
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रूणिच्छागुणिदं लद्धविसेसच्छिण्णं लद्धंतरसंगुणिदे विक्खंभवग्गदसगुण विरलिदइच्छं विगुणिय
४७५ विसमगुणादेगूणं व्यासं तावत् कृत्वा व्यासं षोडशगुणितं
४२,२२१ व्यासार्धकृतित्रिकं सगमाणेण विहत्ते संकलणरासिमिच्छे
२५६ ५१. संजोगावरणट्ठ
२४८ संठाविदूण रूवं ५३. सोलह सोलसहिं गुण
१६६ हारान्तर हितहाराव्याकरणपटुता-आ० वीरसेन की शब्दशास्त्र में भी अबाध गति रही है। उन्होंने अपनी इस धवला टीका में यथाप्रसंग अनेक शब्दों के निरुक्तार्थ को प्रकट करते हुए आवश्यकतानुसार उन्हें व्याकरणसुत्रों के आश्रय से सिद्ध भी किया है। यथा
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३५४ / षट्खण्डागम-परिशीलन
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